कलमकार शीला झाला ‘अविशा’ ने एक बेटी के बोल को अपनी इस कविता में लिखा है। बेटी माँ से बहुत सारी बातें और अपना दुःख बयां करना चाहती है लेकिन…
मां! मै तेरी नन्ही गुड़िया
हां मैं ही तो हूं वो जादू की पुड़ियातेरा आंचल व आंगन ही तो मेरी दुनियां थी
जब मैं हंसती तो तू लेती मेरी बलाइयां थीधीरे-धीरे मैं स्वप्नों संग बड़ी हुई
तेरी छाया तेरे संस्कारों में गढ़ी हुईमां तू तो कहती थी यह दुनिया बड़ी सुंदर है
यहां हर मानव देवता प्रेम का समन्दर हैमां! आज मैंने दानव देखा
हैवान के वेश में मानव देखामां! आज तेरी जादू की पुड़िया का जादू ना चला
बहलाया फुसलाया मनमोहक बातों से छलामां थी प्रेम में अन्धी उसके एक बार भी मैंने तेरा ना सोचा
प्रेम के नाम पर मेरे तन को उसने बार बार नोंचाक्या यह अपराध था मेरा मां कि मैंने उसको प्रेम किया
कामाग्नि में जलकर मेरा सब कुछ मुझसे छीन लियातेरे संस्कारों का कवच जो था प्रेम ने उसके तोड़ दिया
बिन ब्याही मां बनाकर जग में मुझको छोड़ दियामां अब यह दर्द ना मुझसे सहन होगा
जानती हूं यह अधंकार तेरे लिए गहन होगामां तेरी बगिया की कली चली गई मुरझाकर
खुश था वो दानव मेरी मौत से दुनिया अपनी सजाकर
मां! मैं तेरी नन्ही गुड़िया, हां मैं ही तो थी तेरी दुनिया~ शीला झाला ‘अविशा’