एक मजदूर झोपड़ी में रहकर भी एक ‘मजबूत भारत’ के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कुमार किशन कीर्ति की एक कविता पढ़िए- “झोपड़ी के लोग”।
झोपड़ी में रहने वाले लोगों का
संसार अलग होता है
ख्वाबों में महल और
ख्वाबों में जन्नत होता है
इनका हाल दूसरा क्या जाने
सिवा झोपड़ी वालों को छोड़कर
झोपड़ी में भले धन नहीं होता है
लेकिन, दुनिया को जिसकी जरूरत है
वो सुख उसमे होता है
झोपड़ी में एकता, प्रेम बसता है
ईर्ष्या, लालच बाहर खड़ा रहता है
झुग्गियों-झोपड़ियों से हमारी
गावों का निर्माण होता है
तभी तो, भारत गाँवों का
देश कहलाता है~ कुमार किशन कीर्ति