कोरा-काग़ज़

कोरा-काग़ज़

हम कविताएँ तो लिखते हैं किन्तु क्या आपने कभी यह सोचा है कि जिस कागज पर लिखना है वह भी हमसे बात करेगा? कलमकार साक्षी सांकृत्यायन की यह कविता पढें जिसमें कोरा कागज़ कई सवाल पूछ रहा है।

कोरा-काग़ज़ ये पूछ रहा, तुम कैसी कविता लाए हो।
किसकी व्यथा को लिखने में, अपनी कलम चलाए हो।।

अपने समाज की व्यथा सुनाने, आज लग रहा आए हो।
फ़िर एक बेटी जला दी गयी, क्या यही बताने आए हो।।

कोरा-काग़ज़ ये पूछ रहा, तुम कैसी कविता लाए हो।
अंधा है कानून हमारा, बस यही साक्ष्य तुम पाए हो।।

अब किस बेटी और माँ का, तुम दर्द छुपाने आए हो।
कविता के ज़रिए लोगों तक, सच्चाई बताने आए हो।।

कोरा-काग़ज़ ये पूछ रहा, तुम कैसी कविता लाए हो।
अपनी इन कविताओं में, कितनों का दर्द छुपाए हो।।

अब हाहाकार है मचा हुआ, क्या यही जताने आए हो।
कोरे-कागज़ पर दर्द वही, इस बार भी लिखने आए हो।।

~ साक्षी सांकृत्यायन

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