कविता की भिन्न भिन्न परिभाषा सुनने में आती है। विश्व कविता दिवस (21 मार्च) के अवसर पर कलमकार इमरान संभलशाही ने बताया है कि एक कविता क्या-क्या हो सकती है। सभी रचनाकारों को कविता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
कविता सारा संसार रचती है
कभी मंद तो कभी तेज़ चलती हैकविता मुस्कुराती भी है तो रोती भी है
उपजाऊ ज़मीन भी और मोती भी हैगरीब का आशियां कविता ही है
कविता बहन व मां सी गीता भी हैकविता के आंचल में खुशियां रोती है
दुख में भी अनंत सुख ही बोती हैबेटी की मुस्कुराहट व बेटे का ख़्वाब होती है
सूखे गले की शर्बत व शराब होती हैकविता आंगन में अमरूद की तरह फलती है
अमीर के सोफे व गरीब के झोपड़ी में भी पलती हैकविता सुख भी देती है दुख में देती है
लेकिन ये सच है सभी का दुख भी लेती हैकविता गरीब ज़्यादा है अमीर कम है
इसीलिए चितवन के छांव में भी आंखे नम हैकविता “मां” की लोरी व “बाप” का साया भी है
बुजुर्गों की बूढ़ी झुर्रीदार काया भी हैकविता सोंधी खुशबू तो बदबूदार भी है
खुशियां में पलती जुल्म से खबरदार भी हैकविता दंगे रोकती है और आज़ादी भी देती है
अपने में गर आ जाए तो बरबादी भी देती हैकविता महक भी है और फूल भी है
कविता सिर का ठंडा तेल भी व शूल भी हैकविता अपनेपन का एहसास कराती है
यह भी सच वहीं हर रोज़ संसार जगाती हैकविता प्रकृति भी और निर्जीव भी है
वक्त आने पर सबके लिए सजीव भी हैकविता अलविदा के समय चिता भी है
जन्म देने वाले संसार का पिता भी हैकविता कभी खुश तो कभी परेशान होती है
और कफ़न में बंधी कब्रिस्तान भी होती हैकविता प्यार देती है व पुचकारती भी है
गुस्से में ही सही बस दुलारती भी हैकविता परिवार होती है व सदस्य भी होती है
और सरकार भी होती है व रहस्य भी होती हैब्रह्माण्ड के कण कण में कविता होती है
जैसे आकाश में टिमटिमाती सविता होती हैकविता दुवा की शय है और प्रार्थना की सभा भी है
कविता महलों का ताला तो झोपड़ी की चाभी हैकविता अनंत है और गगन भी है
पाताल सी गमगीन है और मगन भी हैकविता सब कुछ है कुछ भी नहीं है
लिखकर तो सबने बहुत कुछ कही हैकविता हज़ार भी होती है और सहस्र भी
जिसकी मनाई जाती है “विश्व कविता दिवस” भी~इमरान सम्भलशाही
कभी मंद तो कभी तेज़ चलती है
कविता मुस्कुराती भी है तो रोती भी है
उपजाऊ ज़मीन भी और मोती भी हैगरीब का आशियां कविता ही है
कविता बहन व मां सी गीता भी हैकविता के आंचल में खुशियां रोती है
दुख में भी अनंत सुख ही बोती हैबेटी की मुस्कुराहट व बेटे का ख़्वाब होती है
सूखे गले की शर्बत व शराब होती हैकविता आंगन में अमरूद की तरह फलती है
अमीर के सोफे व गरीब के झोपड़ी में भी पलती हैकविता सुख भी देती है दुख में देती है
लेकिन ये सच है सभी का दुख भी लेती हैकविता गरीब ज़्यादा है अमीर कम है
इसीलिए चितवन के छांव में भी आंखे नम हैकविता “मां” की लोरी व “बाप” का साया भी है
बुजुर्गों की बूढ़ी झुर्रीदार काया भी हैकविता सोंधी खुशबू तो बदबूदार भी है
खुशियां में पलती जुल्म से खबरदार भी हैकविता दंगे रोकती है और आज़ादी भी देती है
अपने में गर आ जाए तो बरबादी भी देती हैकविता महक भी है और फूल भी है
कविता सिर का ठंडा तेल भी व शूल भी हैकविता अपनेपन का एहसास कराती है
यह भी सच वहीं हर रोज़ संसार जगाती हैकविता प्रकृति भी और निर्जीव भी है
वक्त आने पर सबके लिए सजीव भी हैकविता अलविदा के समय चिता भी है
जन्म देने वाले संसार का पिता भी हैकविता कभी खुश तो कभी परेशान होती है
और कफ़न में बंधी कब्रिस्तान भी होती हैकविता प्यार देती है व पुचकारती भी है
गुस्से में ही सही बस दुलारती भी हैकविता परिवार होती है व सदस्य भी होती है
और सरकार भी होती है व रहस्य भी होती हैब्रह्माण्ड के कण कण में कविता होती है
जैसे आकाश में टिमटिमाती सविता होती हैकविता दुवा की शय है और प्रार्थना की सभा भी है
कविता महलों का ताला तो झोपड़ी की चाभी हैकविता अनंत है और गगन भी है
पाताल सी गमगीन है और मगन भी हैकविता सब कुछ है कुछ भी नहीं है
लिखकर तो सबने बहुत कुछ कही हैकविता हज़ार भी होती है और सहस्र भी
जिसकी मनाई जाती है “विश्व कविता दिवस” भी~इमरान सम्भलशाही
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