जय सिन्हा ने अपने पिता प्रो. राजेश्वर प्रसाद जी की कविता ‘गरीब बस्तियाँ’ इस पटल पर प्रतुत की है। कलमकार राजेश्वर प्रसाद जी ने गरीबों की बस्तियों की दास्तान इन पंक्तियों में समेट ली है, उन लोगों के अभाव को रेखांकित किया है।
गरीब बस्तियों में
गीत तो होता है
कविता नहीं होती
गरीब बस्तियों में
धुआँ तो होता है
आग नहीं होती
गरीब बस्तियों में
चूल्हे होतें है
डेकची नहीं होती
गरीब बस्तियों में
भूख तो होती है
भात नहीं होता
गरीब बस्तियों में
ढिबरियां तो होती है
तेल नहीं होता
गरीब बस्तियों में
बीमारी तो होती है
इलाज नहीं होता
गरीब बस्तियों में
दुकान तो होती है
सामान नहीं होता
गरीब बस्तियाँ तो
खेतों में होती है, पर
खेत नहीं होता
गरीब बस्तियों में
बच्चे तो होते हैं
किलकारियां नहीं होती
गरीब बस्तियों में
शराब तो होती है
पानी नहीं होता
गरीब बस्तियों में
रेडियो तो होता है
अखबार नहीं होता
गरीब बस्तियों में
बुढ़ापा तो होता है
जवानी नहीं होती
गरीब बस्तियों में
आंखें तो होती है
रोशनी नहीं होती
गरीब बस्तियों में
सरकार तो होती है
दरकार नहीं होती
गरीब बस्तियों में
आदमी तो होतें हैं
भगवान नही होता~ प्रो. राजेश्वर प्रसाद
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