कलमकार रमाकान्त शरण जी ने प्रभू श्री राम की वंदना में एक स्तुति की रचना की है, आप भी पढें और अपनी राय वयक्त करें।
१) हे राम
हे रामचन्द्र जानकीवल्लभ हे राघवेंद्र दशरथ कुमार,
हे कौशल्यासुत अवधपति सुनले प्रभु तू मेरी पुकार,
हूँ नाथ अबोध मैं मूढ़मति कैसे करूँ तुझसे विनती,
हे दीनबंधु करुणासागर मिल जाय मुझे शबरी सा प्यार।
असुरों का करके संहार सुर मुनिजन को भय मुक्त किया,
होती अधर्म पर जीत धर्म की जग को यह संदेश दिया,
सुग्रीव विभीषण मित्र बने जो किष्किंधापति लंकेश बने,
मुझपर भी कृपा करना राघव भजता हूँ मैं भी राम-सिया।
हे सुखकर्त्ता हे दुखहर्त्ता हे मर्यादापुरुषोत्तम राम,
बिगड़ी सबकी बनाए हो जिसने भी लिया है तेरा नाम,
विनती सुनले हे गुणनिधान विपदा बड़ी है आन पड़ी,
हे कृपासिंधु! मैं शरण तेरे प्रभु बना दे बिगड़े सारे काम।~ रमाकान्त शरण
पोस्ट कोड SWRACHIT810
कलमकार अनुभव लिखते हैं कि हर कदम पर राम हैं और वे हमारा अहित नहीं होने देंगे। ईश्वर में विश्वास बनाए रखिए, वह अपने सभी भक्तों का ध्यान रखता है।
२) हर कदम पे राम हैं
राम के ही मार्ग पर ये जग है सारा चल रहा,
राम से मिलन को यहाँ सबका मन मचल रहा.राम साथ हैं नहीं कि हर कदम पे राम हैं,
राम के बिना ना यहाँ बनता कोई काम है.दुःख को रोकने का विराम सिर्फ राम हैं,
जग है सारा वेदना आराम सिर्फ राम है.सारे जग की भावना, आराधना में राम हैं,
देव, संत सबकी जटिल साधना में राम हैं.~ अनुभव मिश्रा
पोस्ट कोड SWRACHIT752
कलमकार शंकर फर्रुखाबादी लिखते हैं कि भगवान श्री राम के जीवन और गुणों से हम सभी को सीखना चाहिए। सरलता और सहजता अपनाकर हम सबका मन जीत सकते हैं।
३) श्रीराम से सीखिये
चाहते तो भोग सकते थे वो सारे राजसी ठाठ
लेकिन फिर भी वो गए चौदह वर्ष वनवास
चाहते तो कर देते वो दृष्टि से असुरों का सर्वनाश
लेकिन फिर भी लिया उन्होंने भालू बानरों को साथ
अपने पिता के बचन के खातिर वन में जीवन बिताया था
एक आदर्श बेटे का स्वरुप श्री राम ने जग को दिखाया था
भाई भाई का प्यार भी हमको श्री राम जी ने सिखलाया
एक गया था साथ में वन को दूज़े ने सब था ठुकराया
मानव से मानव का प्रेम क्या होता है ये सिखलाया था
हर प्राणी पर हर पक्षी पर भर भर के प्यार लुटाया था
एक आदर्श मानव के जीवन की झांकी हमको दिखलाई थी
सखा धर्म और प्रजा धर्म की सारी सीख सिखलायी थी
सब जानते थे हरी अवतार हैं वो, प्रभु ने ना कभी जताया था
क्या होता है मानव जीवन बस यही हमे दिखलाया था
कुछ बातें उनके जीवन की गर हमारे मन में उतर जाएँ
होगी ये कृपा उन्ही प्रभु की लेष मात्र कुछ वैसा कर पाएं~ शंकर फर्रुखाबादी
पोस्ट कोड SWRACHIT749
४) हे राम! अब तो लो अवतार
घनघोर अज्ञानता के अंधेरे में डूबा है संसार
छल कपट भरा सबके मन में भूल गए प्यारक्यों ना आए बताओ जलजला प्रकृति में
जब जी रहा हर इंसान अपने ही स्वार्थी मेंअपने मन को खुश करने के लिए बस
दूसरे जीवो के गले पर रख रहा तलवारघनघोरअज्ञानता के अंधेरे मे डूबा है संसार
छल कपट भरा सबके मन में भूल गए प्यारत्राहि-त्राहि मची संसार में डर गया इंसान
अब तो लो अवतार हे मेरे प्यारे भगवान ।।~ महेश राठौर सोनू
पोस्ट कोड SWRACHIT560F
५) आओ शीघ्र अयोध्या राम
सारी लंका पुनः जलाकर, आओ शीघ्र अयोध्या राम
दंभी दशानन के आनन को, पुनः काट कर सियारामजिस अयोध्या का तू राजा, हैं हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई
जातिवाद का भेद मिटाकर, तू सबको बना दे भाई भाई
हर जन के हृदय स्थल में, सुख शांति बरसाओ मेरे रामदूख झेल रहा सिंध सारा, है तपोभूमि में राक्षस का अंबार
ऋषि मुनियों का हवन भंग कर, विध्न पहुंचा रहे बारंबार
शीघ्र तजो अयोध्या कांड, आओ अरण्य कांड को मेरे रामशैतानी पशुवृत्ती टहल रहे, जो न होनी हो अब होना है
तरकश धनुष संग आना ही, मिटाने जो फैला कोरोना है
हर संभव प्रयास करो अब, सकल जग के दाता मेरे रामकलयुगी खरदूषण पापी का, सिर को झट से काटो स्वामी
घमंड सरीखा रावण भूज को, शीघ्र पैगाम को भेजो स्वामी
सीता हरण घटना से पहले, बस जग को बचा लो मेरे रामसमस्त दुखों से हर प्राणी की, भूखी प्यासी प्राण जा रही
अब लॉकडाउन के चलते ही, हर प्राणी पाषाण खा रही
सबका पेट भरे भी कैसे, सबका पेट भराने आओ रामसत्कार करेंगे दिया जलाकर, प्रकाश करेंगे चारो ओर
हर जन सेवक मिलकर अपने, स्वागत करेंगे उठकर भोर
इस अंधकार को दूर भगाने, शीघ्र ही आ जाओ मेरे राम~ इमरान सम्भलशाही
पोस्ट कोड SWRACHIT586A
६) हे राम! प्रभु तुम आ जाओ ना
हे राम प्रभु तुम आ जाओ ना
बड़ा दर्दनाक है मंज़र
इन्सानियत घूम रही ले खंजर
हे राम प्रभु तुम आ जाओ नाचहुंओर ओर छाई है विरक्ति
सब कहते हैं मेरा धर्म मेरा जहांन
पर कोई ना कहता मेरा आर्यावर्त महान
निशब्द सी है वेदना ना है कोई उक्तिहे राम प्रभु तुम आ जाओ ना
राम राज्य तुम ला जाओ नाव्यथित हे हृदय मेरा हलक में सुख रहे हैं प्राण
धर्म के नाम पर ना बंटो तुम
मानवता के नाम पर ना कटो तुम
कह दो ना तुम एक बार मेरा भारत मेरी जानराष्ट्र पर ना शास्त्रार्थ कर
छोड़ धर्म की श्रेष्ठता
पा लो ना तुम मानुषता
राम सा पुरूषार्थ भरइस विद्वेष के रावण को तुम मिटा जाओ ना
हे राम प्रभु तुम जग में आ जाओ ना~ शीला झाला ‘अविशा’
पोस्ट कोड SWRACHIT711E