जिसे बचाने लिए नारायण वराह अवतार।
उसी धरा को कर रहे क्षत-विक्षत चहुंओर।।
अनंतानंत ब्रह्मांड में न है धरा यही उपयोगी।
उपभोग करो संरक्षण करो न बनो ऐसे भोगी।।
हर पल हिमखंड पिघल रहे खतरे में है पृथ्वी।
सावधान हो जाओ अब भी है ये धरा सबकी।।
विषैला हो गया नीर विषैली धरा की ये समीर।
रोको विनाश अब भी धरा हुई कितनी अधीर।।
लोप हुए विपिन के शरणार्थी लुप्त हुई वनस्पति।
जल प्रलय का रौद्ररुप देख अब तो न कर मस्ती।।
हो तैयार कुछ कर यत्न तरुवर लगाओ अनन्त।
हो जाएगी हरी भरी सृष्टि प्रफुल्लित दिग्दिगन्त।।
~ राज शर्मा