सौत बनकर आ गई जिंदगी में
क्या उसमें जो मुझमें नहीं है
उतावले चल दिए उस ओर
मधुशाला पीने पहुंच गए हैं
सब मयखाने की ओर
घर में अकेली फिर हो गई
जब लौटें होश नहीं रहता
वह मार पिट करते हैं
मुझको अबला समझते हैं
बेसुध कर देता है मधुशाला
यह है बस जहर का प्याला
~ सूर्यदीप कुशवाहा