ये मजदूर है
हाँ, वही मजदूर
जिसने तुम्हारे लिए निर्मित किया गगनचुंबी इमारतों को
और स्वयं के रहने के लिए अपना घर भी नहीं बना पाया
तुम्हारे रहने के लिए उसने सुंदर भवनों, आलीशान महलों को बनाया
और खुद रहा झोपड़ियों में
गुजार दिया उसने अपना पूरा जीवन एक छत के नीचे
उसने ऊँची-ऊँची अट्टालिकाओं का निर्माण किया
परंतु कभी-कभी उसे खुद के सोने के लिए भी छत नसीब नहीं हुई
जिसने तुम्हारे लिए सड़कें बनाई ताकि देश की रफ्तार तेज हो सके
परंतु उसके विकास की रफ्तार कभी तेज ना हो सकी
जिसने कल कारखानों में दिन-रात काम किया
अपने शरीर को भट्टी की तरह तपाया
और दिया तुम्हें अनगिनत मुनाफा
ताकि देश की अर्थव्यवस्था आगे बढ़ सके
परन्तु कभी नहीं माँगा उसने उस मुनाफे में अपने खून-पसीने का हिस्सा
तुम आगे बढ़ते गए और उसके खून-पसीने को चूसते रहे
पर उसने कभी उफ्फ भी नहीं की
क्योंकि उसके सामने तो दो वक्त की रोटी का ही प्रश्न इतना बड़ा है
कि बाकी सारे प्रश्न जिसके सामने छोटे पड़ जाते हैं।
~ शिम्पी गुप्ता