कविताओं की खासियत होती है कि वे रचनाकार की कल्पना के सागर में गोते लगाने के बाद उभरतीं हैं। ऐसे ही कलमकार रागिनी स्वर्णकार की एक कविता- ‘बारिश मुझ में’
मैं बारिश में,
बारिश मुझ में…
हो रही नेह की
उर भावों की …
सृजन स्रोत से
झरते निर्झर,
छुअन मदिर ,
बहावों की….
अंगड़ाई लेतीं,
मंजु लहरियां
प्रीत के पनघट
झूम उठे .!
मन के मधुघट
हुये लबालब,
रोम,रोम को
चूम उठे..!
उजला-उजला
चाँद धवल,
मधुरिम क्षण,
पी हुआ प्रबल..!
गिरी शिखरों पर,
अमल- धवल!
झरे -झरे अहो.
तारक दल..!!
~ रागिनी स्वर्णकार शर्मा