बरसात की बूदें प्रकृति में जीवन का संचार करतीं हैं। सावन का महीना बारिश के मौसम की शान है, इस मौसम में प्रकृति का सौन्दर्य अपने अलग रूप में होता है। हिन्दी कलमकारों द्वारा सावन के मौसम का अनूठा वर्णन किया गया है, उनकी स्वरचित कविताएं पढिए।
सावन का महीना ~ सोनल ओमर
बंजर धरती पर जब हरियाली लहराये।
उदास सूना-सूना दिल भी खिल-खिल जाये।
उमड़-उमड़ के बादल गरजने लग जाये।
जब सावन का महीना झूम-झूम कर आये।।
कलियाँ फूल बने उनपर भँवरे मंडरायें।
रिमझिम बरखा में मोर नाचे, पपीहा गायें।
प्रकृति को देखकर हर्षित मन मुस्काये।
जब सावन का महीना झूम-झूम कर आये।।
शिव की आराधना में अनुष्ठान करे जाये।
भक्त हर-हर महादेव के जयकारे लगाये।
कावड़ियाँ शिवलिंग का अभिषेक कराये।
जब सावन का महीना झूम-झूम कर आये।।
वृक्षों की शाखाओं पर झूले पड़-पड़ जाये।
स्त्रियां चूड़ी पहने हाथों में मेहंदी लगवायें।
भाइयों की कलाई पर बहने राखी सजायें।
जब सावन का महीना झूम-झूम कर आये।।
बेबस सावन ~ नीलम सिंह
अपने प्रियतम से मिलने को जैसे होती प्रियतमा व्याकुल,
वैसे ही होती है वसुधा अपने अम्बर से मिलने को व्याकुल।
हम मानव तो कह लेते हैं अपने मन की बातें,
वसुधा कैसे बोले अम्बर से अपने मन की बातें।
तब वसुधा की प्यास बुझाने आता है सावन,
क्षुब्ध धरा को व्याकुल देख आता है सावन।
उसके आते ही मानो खिल उठती है अपनी धरती,
उसके आते ही मानो तृप्त हो जाती अपनी धरती।
सारे जग को लगता है आया सावन उन सबके लिए,
कोई भी ये ना जाने आया है सावन धरती के लिए।
अपने बूंदों से भर लेता है सावन हर प्राणी का मन,
ना जाने कोई भी ये वो भरता है धरती का सूनापन।
आते ही सावन के झूम उठता है धरती का हर प्राणी,
आते ही सावन के खिल उठती है धरती की हरियाली।
हर प्राणी के रोम-रोम को मंत्रमुग्ध जो कर देता है,
धरती से होकर जुदा वो फिर कैसे वापस जाता है।
होता होगा वो भी तो व्याकुल अपनो से बिछड़ने पर,
जैसे रोता है इंसान किसी बेहद अपने को खोने पर।
बचपन से सुना था मैंने सबको कहते आया सावन झूमके,
पहली बार महसूस किया क्या सावन जाता भी है झूमके?
मानसून की दुश्वारियां ~ शिवम झा
यूं चले सावन की हवा
यूं बरसे बादलों की घटा
क्या कहूं मैं क्या कहूं
उजड़ी धरती दुल्हन है बनती
हरियाली चारों और है छाती
झूमे मस्ती में मोर मोरनी
हूंकार दहाड़े शेर शेरनी
जब झम झम बरसती बरसात
मोह ले दृश्य यह मनमोहक सा
क्या कहूं मैं क्या कहूं
करते शैतानी कीट पतंगा
लेते एक दूजे से पंगा
अपनी धुन में लगे रहते
गीत गाते और शोर मचाते
भाए कैसा मैं क्या कहूं
क्या कहूं मैं क्या कहूं
भक्तों की एक टोली आती
बम भोले का धुन सुनाती
चमक उठे सब पत्थर कंकर
जब सावन में नाचे शिव शंकर
इनके आशीष के दाने से
जीता हर भक्त शान से
आशीष की इनकी क्या कहूं
क्या कहूं मैं क्या कहूं?
तुम और बरसात ~ सोनल ओमर
मेरे अनुरोध पर भी जब तू ना आई थी।
पर तेरी याद में बारिश जरूर आई थी।
आँखों से झर-झर बूंदे बह निकली,
जैसे धरा को भी प्यास लग आई थी!
तू ना आई पर तेरी याद बहुत आई थी।।
धरा धूप से दहक रही थी।
मेरे दिल की धड़कन सिसक रही थी।
तभी बिजली गड़गड़ाई थी,
अपनी धरा के लिए बादलों ने बरसात कराई थी!
तू ना आई पर तेरी याद बहुत आई थी।।
धरती की प्यास तो बुझ गई।
पर विरह में मुझमें आग लग गई।
दिल-ओ-दिमाग में बस एक ही बात समाई थी,
तपती भूमि की बेचैनी मिटाने तो बरखा भी आई थी!
फिर ऐसा क्या हुआ कि….
तू ना आई सिर्फ तेरी याद ही आई थी।।
सावन की बारिश ~ सोनी कुमारी प्रसाद
आते ही बारिश का नाम,
मन में अलग ही,
हलचल सी उठती है,
और यह छोड़ जाती है,
सावन की मनभावन अनोखी पहचान।
सामने आ जाते हैं दृश्य गाँव की
हरियाली के, खेतों के, पोखरों के,
नदियों के, तेज बारिश के
बूँदों से माटी में बने गड्ढों के,
जिसमें बारिश की बूंदे जम जाती हैं,
उस माटी में बच्चों का,
भयरहित होकर खेलना, गिरना,सम्हलना,
मानो कोई बीमारी उन्हें छू भी ना पाएगी,
सच है यह नजारे शहरों में कहाँ नजर आएंगी।
आषाढ़ सावन के मध्य में,
चिलचिलाती हुई गर्मी मे,
बहार बनकर आती है,
जब खेतों में किसानों का मनोबल,
धान की रोपाई करते-करते,
थोड़ा थकने सा लगता है,
इनकी बूंदे सहसा बरस कर,
किसानों का मनोबल दोगुना कर जाती है।
उनके खेतों संग मन मंदिर को भी,
धरती की सोंधी-सोंधी खुशबू से,
हरियाली से भर देती है।
रकम-रकम के पंछी नजर आते हैं,
मोर पंख फैलाकर नृत्य करते,
दृश्यमान हो जाते हैं।
जो खो गई है गौरैया,
वह भी अपनी छोटी सी झलक,
दिखला जाती है।
सावन की बारिश की,
बात ही निराली है,
बरस कर थमना,
फिर थम कर बरसना,
इसकी यह खेल,
सदियों पुरानी है।
बारिश की बूँदें ~ सरिता श्रीवास्तव
जब बारिश की बूँदें गिरती है,
तब अच्छा लगता है।
जब बादलों की गड़गड़ाहट कानों को छूती है,
तब अच्छा लगता है।
जब ठंडी- ठंडी बूँदें बदन को भिंगोती है,
तब अच्छा लगता है।
जब गड्ढो मे काग़ज के पतवारो को तैरते देखते है,
तब अच्छा लगता है।
जब छतो से बूँदों की टप-टप आवाज़ को सुनते है,
तब अच्छा लगता है।
जब बारिश मे छिपे पक्षियों को पेड़ों पर उमड़ते देखते है,
तब अच्छा लगता है।
जब बूँदों की मिठास को होठों पर चखते है,
तब अच्छा लगता है।
जब ठंडी हवा सिसकन आह भरने लगती है,
तब अच्छा लगता है।
जब गर्म प्यालों वाली चाय अपनी ओर बुलाती है,
तब अच्छा लगता है।
जब वो बचपन की बारिशों में अटखेलियाँ याद आती हैं,
तब अच्छा लगता है।
सावन की उमंग ~ ललिता पाण्डेय
मन में हर्ष और उल्लास लिए,
भक्ति का रस लिए
त्यौहारों की सौगात लिए
देखो सावन आया झूम-झूम के।
आसमां में लालिमा लिए,
वर्षा की बौछार लिए
भोले का पैगाम लिए
देखों सावन आया झूम-झूम के।
हरी कांच की चूड़ियों में,
साजन का प्यार लिए,
सजनी का श्रृंगार लिए
देखो सावन आया झूम-झूम के।
प्रीतम का संदेश लिए,
मेहंदी की खुशबू लिए,
बागों में झूलों का अंबार लिए
देखो सावन आया झूम-झूम के।
माँ का आशीर्वाद लिए,
बाबुल की दुआएं लिए
सखियों की याद लिए
देखो सावन आया झूम-झूम के।
अरण्य में उत्साह लिए
मयूरों का नृत्य लिए
भवरों का गुंजन लिए
देखो सावन आया झूम-झूम के।
धरा में रौनक लिए
माटी की सुगंध लिए
कृषक की आस लिए
देखो शिव प्रिय सावन आया झूम-झूम के।
महीना सावन का ~ निलेश जोशी “विनायका”
महादेव की भक्ति कर लो
आया है महीना सावन का
धरती ने श्रृंगार किया है
मौसम हुआ मनभावन का।
शिव मंदिर में भीड़ लगी है
करने अभिषेक की तैयारी
मंदिरों में दीप जल रहे
फूलों से लद गई फुलवारी।
सोलह श्रृंगार किया राधा ने
कान्हा की आंखों की प्यारी
कृष्ण राधिका झूला झूले
झूम उठी है प्रकृति सारी।
दादुर मोर पपीहा कोयल
बोल रहे लेकर अंगड़ाई
बादल गरजे बिजली चमके
विरही सब व्याकुल हो जाई।
आम लदे पेड़ों पर कितने
झूम रही हर डाली डाली
मेघ बरसते उमड़ घुमड़ कर
चारों ओर फैली हरियाली।
सावन ~ आलोक कौशिक
पिपासा तृप्त करने प्यासी धरा की
बादल प्रेम सुधा बरसाने आया है
अब तुम भी आ जाओ मेरे जीवन
प्रेमाग्नि जलाने सावन आया है
देखकर भू की मनोहर हरियाली
नभ के हिय में प्रेम उमड़ आया है
रिमझिम फुहारें पड़ीं तन पर जब
मन अनुरागी तब अति हर्षाया है
प्रेम और मिलन का महीना है सावन
प्रकृति व परमात्मा ने समझाया है
बनकर मल्हार शीतल कर दो
कजरी की धुनों ने बड़ा तड़पाया है
सावन का शुभारंभ ~ अपराजिता आनंद
देखो फिर सावन आया है
संग रूत मनभावन लाया है
घुंघरू बांध नाचती ये बूंदें
बादल फिर कोई धुन लाया है
हरियाली छाई है चहुं ओर ऐसे
प्रकृति में कोई रंग न हो जैसे
सुरज कर रहा है अठखेलियां
देखो रंग लेने आयी हैं तितलियां
लहरें भी आयी हैं पुराने किनारे पर
बस ये ले ना जाए कुछ और मगर
चांदी सी चमक रहीं ये नदियां
खिला रहीं अनगिनत ये कलियां
हो रही मंदिरों में महादेव की पूजा
है वो पालनहार कोई और न दूजा
सजी हैं हरे व लाल रंग में स्त्रियां
लगती हैं जैसे हो रंग की परियां
ये रूत जो नव जीवन संग लाया है
देखो फिर वो सावन लौट आया है
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