यादों की बारिश आपको सिर्फ भिगोती नहीं है यह यादों में डूबो देती है। हमें रोज अनगिनत पलों की याद आ जाती है कुछ मीठी तो कुछ खट्टी। कलमकार सुनील कुमार की यह रचना पढें जो इस बारिश में भीगी हुई है।
कब छूट गया वो बारिश में नहाना
बहते पानी में कागज की कश्ती चलाना
आज जब देखता हूं बारिश की बूंदों को
याद आता है मुझे वो गुजरा हुआ जमाना
वो नंगे पांव पानी में दौड़ लगाना
बूंदों संग जी भर खुशियां मनाना
कभी-कभी सोचता हूं
क्या बदल गई वो बारिश
या बदल गया वो मौसम पुराना
आखिर कहां गया वो खुशियों भरा जमाना
जब कभी यादों के आईने में देखता हूं
तो दिखता है धुंधला- सा एक चेहरा पुराना
दिखता है किसी का मुझसे नजरें चुराना
और बिना कहे बहुत कुछ कह जाना
अक्सर लोग कहते हैं अब हम बड़े हो गए
कागज की कश्ती और बारिश की बूंदों से परे हो गए
पर क्या सच में हम इतने बड़े हो गए
कि अपनी ही खुशियों से परे हो गए
कभी फुरसत मिले तो सोचना और मुझे बताना
क्या तुम्हें भी याद है वो कागज की कश्ती
और तुम्हारा बारिश में नहाना~ सुनील कुमार