बहुत सुहानी लगती ये बरसात है।
मिली धरा को अनुपम ये सौगात है।।
दादुर मोर पपीहा बोले
बदरा गरजे छैल छबीले
भीग गये हैं पवन झकोरे
इंद्रधनुष के रंग में बोरे
घटा दीवानी हर पल ही मदमात है।
बहुत सुहानी लगती ये बरसात है।।
छंद- छंद सी बूँदे नाचे
झरने देखो भरे कुलाँचे
सागर से मिलने को व्याकुल
नदियाँ प्रेमपत्र अब बाँचे
लिखने लगती ये ज्यों भुजंग- प्रयात हैं ।
बहुत सुहानी लगती ये बरसात है।।
वीरवहूटी लाल मखमली
धानी धरती लगे मलमली
हिंडोले डालें यौवन ने
हृदय खिले, खिले प्रीत कली
मन महकाता भाता पारिजात हैं।
बहुत सुहानी लगती ये बरसात है।।
~ रागिनी स्वर्णकार शर्मा