मेरी बहन
टूटता है हौसला जब भी मेरा
या जिंदगी कोई बबाल देती है,
परिस्थित चाहे कैसी भी हो
मेरी बहन मुझे सम्भाल लेती है.
मस्ती करती साथ में मेरे शरारतों
में निभाती बराबर की हिस्सेदारी है,
बचाती पापा की डांट से मुझको,
थोड़ी नकचिढी है, पर जैसी भी है
बहुत प्यारी है.
मेरी गर्लफ्रेंड की भी खबर है उसको,
मेरे सारे राज वो छुपाकर रखती है,
हाँ काम ना करूँ उसका कोई तो
जरा-जरा सी बात पर मुझे धमकाती है.
ख्याल रखती है मेरा खुद से भी ज्यादा
कभी कभी तो मुझसे गुस्सा भी हो जाती है,
मुझसे लड़ती है झगड़ती है कभी कभी
तो नाराज होकर भी प्यार जताती है.
जो बोले मुझसे कोई भी गलत
तो नहीं कर पाती वो सहन है,
वास्तव में मेरी मुस्कराहट की
वजह सिर्फ मेरी बहन है.
राखी
कितना प्यारा यह पर्व है देखो
बस प्यार का धागा और गुड़ की मिठाई
प्यार से चूमती बहन हाथ भाई का
प्यारी बहना का माथा चूमता भाई
करो सम्मान हर एक भाई का
किस्मत वाले जो हमने बहन है पाई
जाकर पूछो दर्द उस भाई का
जिसकी किस्मत में बहन ना आई
बड़ा ही पावन पर्व है ये
जिसका आधार है बहन व भाई
पवित्र से इस प्यारे बंधन को
हाथ जोड़ मैंने है शीश नवाई
मैं राखी बांधूगा
मैं पुरुष हूँ
मैं एक भारतीय पुरुष हूँ।
मुझे एक स्त्री ने पैदा किया है।
मेरी बहन भी एक स्त्री है।
फिर भी मैं स्त्री को निर्बल समझता हूँ।
स्त्री को मनोरंजन की चीज़ समझता हूँ।
अनुदान स्त्रियों को अश्लीलता भरी निगाह से देखता हूँ।
मुझे आज़ पुरुष होने पे शर्म है।
मुझमें वो पौरुष नहीं की मैं पुरुष कहलाऊँ।
मैं लायक नहीं की मैं राखी बंधवाऊँ।
मेरी पत्नी भी एक स्त्री है।
मेरी बेटी भी एक स्त्री है।
वो कैसा भाई,
जो दूसरी स्त्री के जीवन में है बना कसाई।
इस रक्षाबंधन मैं राखी बांधूगा,
मैं तब तक राखी बाधूँगा
जब तक की मैं राखी बँधवाने लायक नहीं हो जाता।
मैं भाई नहीं बन जाता,
मैं पुरुष नहीं बन जाता।
धागों में लिपटा रक्षाबंधन
रेशम के धागों में लिपटा,
भाई-बहन का प्यार।
एक बरस के बाद है आया,
ये राखी का त्यौहार।।
रंग बिरंगी राखी देखो,
बाजारों में मिलती है,
कितनी प्यारी दिखती है,
हथेली पर जब ये बंधती है।
आँखे भर – भर जाती,
देख अनोखा प्यार,
एक बरस के बाद है आती,
ये राखी का त्यौहार।।
मोल नही कुछ है राखी का,
अनमोल ये रिश्ता होता है,
बहन का अहोदा माँ समान है,
भाई फरिश्ता होता है।
कभी खूब बनता है दोनो में,
कभी होता खूब है तकरार,
एक बरस के बाद है आया,
ये राखी का त्यौहार।।
सरहद पर जब होता भाई,
चिट्ठी में राखी जाती है,
घर कब आओगे भैया,
यही सवाल उठाती है।
कैसे बताए भाई बहन को,
क्या है सरहद का हाल,
एक बरस के बाद है आया,
ये राखी का त्यौहार।।
ससुराल से बहना मायके आए,
राखी से वो कलाई सजाए,
मुँह कराकर मीठा उसका,
माथे पर है तिलक लगाएं।।
बदले में पाती है वह,
ढेर सारा उपहार,
एक बरस के बाद है आया,
ये राखी का त्यौहार।।
राखी का त्योहार
बहन भाई के निर्मल मन में, सदा जगाये प्यार।
राखी का त्योहार सुहाना, राखी का त्योहार।
भाई की जीवन फुल-बगिया, खिल कर सुरभि लुटाये।
भइया की झोली खुशियों से, हे ईश्वर भर जाये।
तिलक भाल पर लगा, आरती,करती बारम्बार।
राखी का त्योहार सुहाना, राखी का त्योहार।
राखी का यह पावन धागा, मस्तक पर शुभ रोरी।
कभी न टूटे भाई- बहन के, प्रेम की निर्मल डोरी।
भाई रक्षा हित तत्पर है, बहन लुटाती प्यार।
राखी का त्योहार सुहाना, राखी का त्योहार।
भाई कहता बहन कभी भी, दुखी नहीं तुम होना।
तेरे आगे सभी तुच्छ हैं, यह चाँदी औ’ सोना।
इन धागों का मोल नहीं है, यह अनुपम उपहार।
राखी का त्योहार सुहाना, राखी का त्याहार।
रक्षाबंधन- मुक्तक
बना ये सूत का धागा, निशानी प्रीत की समझूँ।
निशानी मतलबी जग में, अनूठी रीत की समझूँ।
कलाई पर सजा देखूँ, निराले नेह का बंधन।
सभी रिश्तों में पावन ये, निभानी प्रीत की समझूँ।
सजाए थाल रिश्तों का, आ गई सावनी राखी।
हजारों रंग के सपने, लिए मन भावनी राखी।
कि शिव संकल्प रक्षा का जगाती भावना मन में,
सजेगी अब अब कलाई पर, बड़ी इठलावनी राखी।
सुनहरे रंग लेकर के, लुभाने आ गई राखी।
कि आलस छा रहा मन पर, मिटाने आ गई राखी।
शगुन की शुभ घड़ी में जो किसी बहना से इक वादा,
किया था जो बरस पहले, निभाने आ गई राखी।
इसे जी भर निहारूँ मैं, बहिन के प्रीत की साखी।
कि सजती है कलाई पर, सुनहरी रीत की राखी।
युगों पहले हुई थी जो, घटित इतिहास में गाथा
दिलाती याद वो किस्सा, अनूठी जीत की राखी।
रक्षा बंधन
रेशम की कच्ची सी गोरी
बहना ने बांधा संसार
भैया के हाथों में अब है
मर्यादा का गुरुतर भार।
सारे जग में सब से सच्चा
स्नेह भाई बहन का होता
जो राखी पर ना मिल पाता
बैठ किसी कोने में रोता।
दौड़ा आया था वो हुमायूं
राखी की बस लाज बचाने
नही इसे किसी धर्म से जोड़ो
यह न हिन्दू-मुस्लिम जाने।
सावन की रिमझिम में देखो
भीग भीग कर सब जाते हैं
छोड़े सारे काम जरुरी
लेकिन राखी बंधवाते हैं।
इंद्रधनुष से बनी थी राखी
वसुधा ने है व्योम को बांधा
हर्षित होकर बादल गरजे
नेत्रों से है जल भर आया।
सदा हीं तुम खुश रहना बहने
इस राखी पर मेरी विनती
इस राखी से याद करुं मै
सौगातें वो सब छुटपन की।
राखी आई
राखी आई खुशियां लाई
बहन आज फूले न समाई
राखी, रोली और मिठाई
इन सबसे थाली सजाई।
बांधे भाई की कलाई पर धागा
भाई से लेती वादा
राखी की लाज भैया निभाना
बहन को कभी भूल न जाना।
भाई देता बहन को वचन
दु:ख उसके सब कर लेगा हरण
भाई बहन का प्यार है
राखी का आज त्योहार है।
रक्षाबंधन में सुनी कलाई
रक्षाबंधन का त्यौहार आया
याद मुझे मेरी बहन का दुलार आया
चार साल पहले वो गुजर चुकी है
मेरी कलाई उसकी राखी को तरस गई है
बहुत खुशमिजाज थी वो हंसती थी हंसाती थी
जब मैं सोता था मुझे बहुत सताती थी
कभी मां जैसी बन मुझे मां की मार से बचाती थी
रोज सुबह सुबह मंदिर जाती थी
आकर सबसे पहले प्रसाद मुझे खिलाती थी
पढ़ाई में भी वो बहुत होशियार थी
हर काम के लिए रहती तैयार थी
किसी कठिनाई से नहीं डरती थी
हर बाधाओं को पार करती थी
पर वो बिमारी के आगे बेचारी हो गई
भगवान को मानती थी वो
भगवान को प्यारी हो गई
और मेरी कलाई सुनी हो गई
राखी का त्यौहार
कभी चिट्ठियां घर को आती
अक्षरों को आंसू से फैला जाती
फैले अक्षरों की पहचान
ससुराल के निर्वहन को बतलाती।
पिता की अनुपस्थिति में
भाई लाने का फर्ज निभाता
तो कभी ना आने पर
वही राखी बंधवाता।
बिदा लेते समय
बहना की आँखे
आंसू से भर जाती
भाई की आँखें
बया नही करती बिदाई।
सिसकियों के स्वर को
वो हार्न में दबा जाता
राखी का त्यौहार पर
भाई बहन के घर जाता।
रेशम की डोर में होती ताकत
संवेदनाओं को बांध कर
बहन के सुख के साथ
रक्षा के सपने संजो जाता।