उमंग में लालिमा

उमंग में लालिमा

कलमकार हिमांशु बड़ोनी (शानू) की एक कविता पढें। हमारे भीतर अनेक उमंगे होती है लेकिन क्या हर उमंग सकारात्मक होती है?

कह कर चोरी करूंगा,
क्या चोरी कर कह सकूंगा?
सह कर दिया करूंगा,
क्या ठोकरें सब सह सकूंगा?

चलूंगा साया बन कर,
क्या साये-सा चल सकूंगा?
रखूंगा निग़ाह छल पर,
क्या निग़ाह से छल सकूंगा?

देखूंगा भला बुरा मैं,
क्या भला बुरा सब देख सकूंगा?
लिखूंगा जगत के लिए,
क्या इस समाज हेतु लेख लिखूंगा?

करूंगा मेहनत कर्म यहां,
क्या कर्म मेहनत से कर सकूंगा?
भरूंगा अंग अंग में उमंग,
क्या उमंग में लालिमा भर सकूंगा?

– इं० हिमांशु बड़ोनी (शानू)

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