इस संसार में हर इंसान को चिंता ने ग्रसित किया हुआ है फिर भी हम कहते हैं कि चिंता मत करो। कलमकार मुकेश बिस्सा ने इसी चिंता को विस्तार में अपनी कविता में बताया है।
हम सभी की जिंदगी में
चिंता की बहुत भूमिका है।
जैसे ही धरती पर आये
वैसे से ही चिंता ।
माँ-बाप शाला भेजते थे तो
विद्यालय जाने का चिंता।
गृहकार्य पूरा ना
कर पाने की चिंता।
दोस्तो के साथ खेलने
जा पाने की चिंता।
स्कूल परीक्षा उत्तीर्ण
करने की चिंता।
बडे महाविद्यालय में
प्रवेश पाने की चिंता।
परिवार से दूर रह
कर पाने की चिंता।
पाठ्यक्रम पूरा कर
रोजगार पाने का चिंता।
रोज की जरूरतों से
पैसे बचाने की चिंता।
जीवन यापन के लिए
अच्छी बीबी पाने की चिंता।
बेटा होगा या बेटी
इस बात की चिंता।
निजी और व्यावसायिक जिंदगी में
ठीक सामन्जस्य ना कर पाने चिंता।
वृद्धावस्था में देखरेख कैसे हो
इस बात की चिंता।
चिकित्सक ने कहा आप को चिंता है
लो अब इस बात की चिंता।
जन्म से मृत्यु तक अगर कुछ है
अनवरत तो वह है चिंता।~ मुकेश बिस्सा