कलमकार खेम चन्द ने भी आज गणतंत्र दिवस के सुअवसर यह कविता साझा की है। एक बार फिर से गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई।
वक्त लगा था वक्त को वक्त बनाने में
देश को राजतन्त्र से गणतन्त्र बनाने में॥
वक्त लगा था राष्ट्र को गोरों के चंगुल से छुड़ाने में
वर्षों बीत गये थे मकान को घर बनाने में॥
वहोत तीरंदाजी हुई थी पूर्व में
सीना वीर योद्धाओं का रहा हर बार निशाने में॥
जिन्दगी कुर्बान कर दी बहोतों ने गणतन्त्र की ख़ातिर
पौधे को वृक्ष बनाने में॥
कुछ उधार लिया कुछ सुधार किया
कुछ बातों के लिये सात समंदर पार किया॥
तब जाके इस संविधान ने गणतन्त्र का रूप लिया॥
चर्चाओं का दौर चला बातों का घमासान हुआ
बहोत मुश्किलों के बाद शब्दों ने ऊंचाइयों को छुआ॥
गान लिया फिर मान दिया
मेरे संविधान ने पूर्ण सब देशवासियों को सम्मान दिया॥
तिरंगा विश्व झंडा हमारा
है हमें ये अपनी जान से भी प्यारा॥
भूला न देना गणतन्त्र के मुर्तिकारों को
चाहे बदल देना अपनी निकम्मी सरकारों को॥
ये दिवस हर्षोल्लास का है
महीना बसंत बहारों का॥
गणतन्त्र की स्याही का बेशकीमती मोल है
मेरा भारत महान अखंड इसका भूगोल है॥
अपनी बोली मिली सबको मिली भाषाएँ प्यारी
संविधान लेख माली है भारत बाग हम सब देशवासी फूलों की क्यारी॥
संभाला है खंगाला है गणतन्त्र को रचनाकारों ने
मेरा भारत महान है हम सबके विचारों में॥
झुकने न देंगे रूकने न देंगे आँधी ,चक्रवात तुफानों में
कण-कण जोड़ा है गणतन्त्र ने हर घर हर मकानों से॥
चाहे मिट्टी लाना या लाना राख तुम शमशानों से
मेरा अखंड भारत चमकता रहेगा सामान हर निशानों से॥~ खेम चन्द
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