हे! जननी के सपूत चलो, सुयश का गान करें
स्व धरा सुरक्षित करके, पृथ्वी दिवस का मान करें
आओ मिलकर सर्वजन, सौंदर्य सा इसे सजाए
सम्पूर्ण धरा पे वृक्ष लगा के, प्रदूषण को दूर भगाए
हरित रंग को कवच बनाएं व हर पत्तों को ढाल
वृक्षों की ठंडी छांव तले, हम सदा लगाएं चौपाल
स्वगृह घना जंगल हो और आंगन हो बरगद सा
थका पथिक आए तो,हो मन आह्लादित गदगद सा
हर परिंदा आज़ाद करें हम और लगाएं अपने गले
आशियाना जो तोड़ रहे है, उससे नहीं कभी मिलें
अंबर सबका छत है भाई, वसुंधरा हमारी बिस्तर
इस उपवन की जो पवनें है, सभी हमारे दर्पण
धुआं उड़ाना बन्द करें हम व ज़हर भरा कोई नाला
सर्व छुधा को तृप्त करें हम और स्वच्छ करें गौशाला
आपस की हर भेद मिटाकर सुख चैन सा गले लगाएं
हरेक दुर्गति को रौंद रौंद कर अंधगुफा में चलो सुलाए
ये जीवन गर अमोल अमृत है, धरा भी मेरा कम नहीं
हर फसलों को रोज़ उगाएं जैसे हो कोई ग़म नहीं
अब क्या,आओ मिलकर सब कसम को खाएं
“मां” धरती के गुप अंधियारा, मिलकर दूर भगाएं
~ इमरान संभलशाही