कितने अमीर कितने गरीब धर्म हमारे

कितने अमीर कितने गरीब धर्म हमारे

हम आज कितने भी आधुनिक हो गए हों किन्तु जात-पात के मुद्दों से जुड़े रहते हैं। कलमकार खेम चन्द ने इसे बड़ी समस्या बताते हुए कविता के माध्यम से अपना मत प्रकट किया है। आखिरकार हम सब एक हैं और एकता का भाव हमेशा हृदय में होना चाहिए।

फूलों का महकता बाग और काटों से सजी फूलबारी है
कितनी बदली-बदली सी लगती इन कोमल नयनों को ये दुनिया सारी है॥
एक तरफ मान सम्मान तो दूजी तरफ निगाहें अत्याचारी है
न जाने अबकी बार धर्म पथ मर मिटने की किसकी बारी है॥
न रंग में है न खून में धर्म जाति की विरासत प्यारी
बस विचारों ने ही जकड़े रखी है सोच समझ हमारी॥
एक ख्याल की लाश जाकर जब राख से टकराती है
बस हाड़ मांस का पुतला है हर श्मशान की राख यही बतलाती है॥
मिटा दो ये भेदभाव की सीमा धर्म प्रहरी
मान सम्मान सबका बराबर हो बस दुविधा कहाँ है ठहरी॥
धनकुबेरों ने सजा लिया है मंदिर, मस्जिद, मीनारों को
थोडा़ दान इन्हीं धर्मों से बांट दो बेसहारों को॥
तोड़ दो जो दीवारें हमने है बरसों पहले बनाई
हो शोभा समाज की सभी और मानवता दे हर जगह दिखाई॥
न किसी से वैर रखो न रखो किसी से लडा़ई
सभी मिलकर सबके सुख-दुख समझो रहो भाई भाई॥
हर दिशाओं का पानी प्यास मिटाये
हम सभी को सीख एक नयी सिखाये॥
तोल क्यों रंग-वर्ण का है लगाते
रक्त हम सभी एक वर्ण लाल है पाते॥
कुछ नादान है कुछ समझ है अल्फा़जों के भरोसे
जो भी बस राग यही धर्म जात का न कोसे॥
हर शब्द खेम चन्द की एक अलग निशानी है
हम एक धर्म है मानवता बस बात यही समझानी है॥

~ खेम चन्द

हिन्दी बोल इंडिया के फेसबुक पेज़ पर भी कलमकार की इस प्रस्तुति को पोस्ट किया गया है।
https://www.facebook.com/hindibolindia/posts/398654014375110
Post Code: #SwaRachit156

Leave a Reply


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.