तख़्ती-कलम: यादें पाठशाला की

तख़्ती-कलम: यादें पाठशाला की

शिक्षा ग्रहण करने हेतु हम सभी विद्यालय जाते हैं और वहाँ ज्ञान के साथ-साथ अनमोल मित्र और सुनहरी यादें हासिल करते हैं। कलमकार खेमचंद ने अपने स्कूल के दिनों की याद एक कविता में सँजोया है। आप भी पढ़ें यह कविता जो आपको उन पुराने दिनों की याद जरूर दिलाएगी।

शुरू हुआ जब जीवन में शिक्षा ग्रहण करने का दौर
छोड़ने पड़े दिनभर मस्तियां करते जो हम शिक्षा प्राप्ति के लिये घौर।
पहली कक्षा में जब बडी बहन ने मेरा दाखिला करवाया
वक्त ने गांवों से दूर मुझे बहुत सारे सहपाठियों से मिलवाया।
अध्यापिका जी ने भी श्यामपट पर वर्णमाला का अभ्यास कराया
पर “खेम चन्द” नादान, नटखट था उस साल पास हो ना पाया।
फिर से समय कि धार ने उसी कक्षा में बिठाया
अब मेल नये सहपाठियों से बनाया।
शालू, किरना, बिना, पुनमा, उर्मिला, रंजना, महिमा, भवमेश्वर,
हिमांशु, गुड्डू, नीलू, भानू, हिरा, भागू, गंगा राम बहुत सारों का मिला साथ
अब तख्ती पर कलम के संग चलने लगे थे हमारे हाथ।

तख्ती लिखने में सब थे कलाकार, पर लिखावट थी हम सबकी बेकार।
शाम को तीन बज़े हमे गाना सुनाते, फिर वापिस घर अपने-अपने आते।
बहाने बनाने में हम सब थे उस्ताद, आंखों में आंसू लाकर अपनी गुरूजन कर देते थे माफ।
स्लेट-स्लेटी का अपना काम, जमा-घटाना, गुणा-भाग अपना नाम था।
धीरे-धीरे पंहुचे हम सभी कक्षा चतुर्थ, वहां मिली नई सहपाठी लडकी
नाम था जिसका कमला, लिखावट थी उसकी जैसे लिखती हो मशीन
पहले बिठाया था उसको कक्षा तीन।
स्कूल की छत से गिरकर हाथ मेरा टूटा था
मां का गुस्सा उस शाम ममता के साथ मुझपर फूटा था।

पहुंच गये हम कक्षा पंचम
जहाँ मिले मुख्यअध्यापक हमें गुरू “श्रीमान मेहर चन्द “जी महान ।
सुनाई थी उन्होंने एक रोज कहानी गुरू-शिष्य आरूणी की
कहा जो इसे अब मुझे सुनायेगा वो इनाम मुझसे पायेगा।
सुनाई जब मैंने कहानी वो सारी थी
गुरू जी ने पांच रूपये इनाम कि शिक्षा हमपर बारी थी।
पंचम पास कर पहुंच गये कक्षा षष्ठी हम सारे
दूसरों विद्यलों से भी पढ़ने आये थे फिर बच्चे बड़े न्यारे।
चलता रहा फिर प्रतिस्पर्धा का एक-दूसरे से झगड़ा
कौन है कक्षा में देखते हैं हम यहाँ सबसे तगड़ा।
हम ठहरे थे कला के छोटे पुजारी
प्रातःकाल में किसकी लगानी है प्रतिज्ञा, विचार, भाषण, समाचार, सामान्य ज्ञान की बारी।
सुभाष सर, पवन सर, कृपा राम, कमला मैडम, रजनी मैडम, विक्रम सर, सुनील सर,
तुलसी राम सर, कमलजीत सर इत्यादि थे अब गुरू हमारे
शिक्षा की अलख नादान मन के अन्दर जलाना थी इनके सहारे।

प्रेम -था दुलार था गुरूजनों का विद्यार्थियों से था प्यार
पर फिर भी पड़ती थी हमें सबसे मार।
कई मित्र बने पाठशाला में हमारे
एक एक हम अध्यापिका रजनी जी ने संगणक की कक्षा से बाहर उतारे।
फूटे क़िस्मत थे तब हमारे कर दिया खुद को सबसे किनारे।
चला कारवां शिक्षा प्राप्ति का यही दिन-रात
संस्कारों की होती रही हर गुरूजनों से हमपर बरसात।
बहोत लम्बी है तख़्ती -कलम कि यादों की बात
फिर सुनाऊंगा कभी मिलकर सारी घटनाएँ कायनात।

~ खेमचंद

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