हिमाचल के बन्जार में एक बस हादसे का जिक्र अपनी कविता में करते हुए कलमकार खेम चन्द ने बताया है कि दुर्घटनाओं के बाद परिवार में खामोशी छा जाती है और सभी का हृदय विचलित हो जाता है।
घर था सबका दूर दराज़ किसी का था घर सराज़
रूला दिये हादसे ने सभी खुशनुमा हंसमुख नयन आज।
क्या? दुखद घड़ी आन पड़ी
सांसें कितनी ही मासूम कब होगी मौत से लड़ी।
घर पर परिवार की आँखें है, अपनों के इन्तज़ार में खड़ी
हादसा दे गया जख्मों की टोली बड़ी।
कुछ चीखे तो कुछ चिल्लाये होंगे
सहायता के लिये अपने देवी देवताओं संग सब बुलाये होंगे।
किस गलती की सज़ा है खुदा ये,
कितने चिराग बिन जवाबों के दुनिया से आज तुने मिटाये होंगे।
पुछ रही है दादी माँ हाल पौत्री और बेटे का
ढूंढ रहें है अक्स अपनों के चेते का।
रोता मकान, चिल्ला रही है घर की दीवारें
इस पल नयन से सब अपनों को पुकारें।
आओ मिलकर हम अपनी गलतियों को सुधारें
कुछ सोच और समझ को विचारें।
किसी ने बेटा खोया किसी ने बेटी खोई
मंजर भयंकर तबाही का देखकर, आँखें राह पर सबकी रोई।
इन्तज़ार करता परिवार, दादी इन्तज़ार में पल दो पल भी न सोई।
बिखर गये घर परिवार, हादसे से फसल जख्मों की बोई।
मासूमियत भी हो गई हादसे का शिकार
बिखलते अपनों के लिये सब लग रहें हैं लाचार।
आओ करें हादसों से गलतियों में सुधार
अपनी गलतियों को करें स्वीकार।
आओ युवा साथियों साथ मिलकर लडने को हो जाओ तैयार।~ खेम चन्द
हिन्दी बोल इंडिया के फेसबुक पेज़ पर भी कलमकार की इस प्रस्तुति को पोस्ट किया गया है।
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