बादलों की खिलखिलाहट एक संदेश लेकर आती है जो प्रकृति को झूमने पर विवश करती है। बरसात के आगमन से सभी आनंदित होते हैं, मुकेश अमन ने अपनी कविता ‘खिलखिलाते मेघ देखो’ में बादलों की चर्चा की है।
खिलखिलाते,
गीत गाते,
उमड़ घुमड़ते मेघ देखो।
चल रहे है,
हाथ थामें,
बादलों की ऐक देखो।
बहुत दूर से आ रहे है,
आब का बोझा उठाए।
लोकहित में, नील नभ में,
स्वयं को रोजा रखाए।
बिजलियों की,
मार फिर भी,
बादलों की नेक देखो।
यहां खड़े थे, वहां पड़े है,
क्हां झूके थे, कहां झड़े है।
बादल है पागल दिवाने,
नीर के मीठे घड़े है।
मेघ है,
गतिमान, चंचल,
बादलों का वेग देखो।
आ रहे है, जा रहे है,
नीर भर-भर ला रहे है।
मेघ है मतवाले, भोले,
गीत रिमझिम गा रहे है।
सावन का,
मल्हार बादल,
श्याम-सुन्दर रेख देखो।
~ मुकेश अमन
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