स्वाभिमान आपको कभी शर्मिन्दा नहीं होने देता है। यह मान-सम्मान बरकरार रखने में सदा सहायक होता है। कवि उदय नारायण सिंह “सम्यक” ने भी स्वाभिमान को अपनी पंक्तियों में संबोधित किया है।
उतर रहा है सूर्य धरा पर, फिर तम का स्थान कहाँ,
है जिसके मन मे भय स्वारथ, वहाँ रहा स्वाभिमान कहाँ।सब मिलते हैं आते जाते, करते हैं गुणगान यहाँ,
वक्त की मार संताप समय का, मिलते हैं मेहमान कहाँ।धूप मे छाया, जग मे माया, विचलित करते हैं मन को,
ठोकर खाकर सिख मिले जो, मिलता ऐसा ज्ञान कहाँ।चीनी आटा दाल नही है, आतंकी के देश मे,
अवाम पाक की ढूंढ रही, मेरा प्यारा इमरान कहाँ है।जो संकट मे साथ है देता, देश उसी का होता है,
जैसा मेरा देश है भारत, दुनियाँ मे ऐसा देश कहाँ।~ उदय नारायण सिंह “सम्यक”
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