माँ की परछाईं

सभी को यह एहसास होता है कि कोई तो कि उसकी माँ उसके साथ है। कभी-कभी माँ से दूर होने पर उनकी यादें/बातें परछाई बनकर हमारे संग रहती है। कलमकार साक्षी सांकृत्यायन की यह पंक्तियाँ आपको माँ की महानता वयक्त करतीं हैं।

पास रहे या दूर रहे हर वक़्त में वो एहसास रहे
परछाईं बनकर के ‘माँ’ ही हर वक़्त हमारे पास रहे।

अपने बच्चों की हर ग़लती ‘माँ’ की नज़रों में माफ़ रहे
सुख-दुःख में अपनी ‘माँ’ ही तो परछाईं बनकर साथ रहे।

दुनियां की सारी दौलत हो जो अपनी ‘माँ’ के पास रहे
परछाईं बनकर के ‘माँ’ की हर दुवा में उसकी औलाद रहे।

~ साक्षी सांकृत्यायन

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