हर किसी की पसंद अलग होती है, मुझे कुछ तो उसे कुछ और पसंद होगा। भवदीप की यह पंक्तियाँ आपको अवश्य पसंद आएंगी।
उसे पसन्द था श्रगार का काजल,
और मुझे पसन्द थी उसकी कजरारी आँखे।
उसे पसन्द था जीन्स पर टॉप,
और मुझे पसंद था पल्लू, सर पर।
उसे पसंद था खुद में रहना,
और मुझे पसंद था खुद को कहना।
उसे पसंद था छुप कर रोना,
और मुझे पसंद था चुप कर सहना।
उसे तलाश थी राजा की,
और मैं रानी उसमें खोजा करता था।
उसे पसंद था सन्नाटा रातों का,
और मैं ज़िन्दगी फुटपाथ पर तलाशा करता था।
उसे पसंद थी भक्ति बाबा की,
और मैं कहानी में भक्ति खोजा करता था।
उसको पसंद था घुट कर मरना,
और मैं खुल कर जीना चाहता था।
उसे पसंद थी भाषा वॉयलेंस की,
और मैं पपिया झपिया बांटा करता था।
उसको पसंद था मेरा कुछ होना,
और मैं उसका सब कुछ होना चाहता था।
~ भवदीप सैनी
हिन्दी बोल इंडिया के फेसबुक पेज़ पर भी कलमकार की इस प्रस्तुति को पोस्ट गया किया है।
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