कह दूँ

कह दूँ

अजय प्रसाद जी की चंद पंक्तियाँ प्रस्तुत है जो मन की बात कह डालने पर जोर दे रहीं हैं। सुननेवाले का जबाब पाने के बाद और भी कुछ इजहार करने का मन करता है।

भरी दुपहरी को चांदनी रात कह दूँ
कदमों में तेरे मैं पूरी कायनात रख दूँ।
फ़िर मत कहना कि मैंने बताया नहीं
तू कहे तो घर के सारे हालात रख दूँ।
छुप कर इज़हारे इश्क़ मुझे मंजूर नहीं
भरी महफिल में दिल की बात रख दूँ।
जरा सोंच ले मुझे आजमाने से पहले
कहीं तेरे आगे न तेरी औकात रख दूँ।
गर हो जाये जानेमन तुझे रिश्ता कबूल
तो घर पे तेरे मैं अपनी बारात रख दूँ।

~ अजय प्रसाद

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