विरह की यादें बहुत कष्टदायक होतीं हैं लेकिन ऐसे कष्ट की भी आदत डालनी पड़ती है। विरह में जो कष्ट सहने और जुड़ी यादों को दर्शाती अमित मिश्र की चंद पंक्तियाँ हैं- सिमटती यादें।
तेरी यादों में अब तो सिमटने लगी हूँ
बेवजह करवटें अब बदलने लगी हूँ
किस मुकाम पर ले जायेगी जिंदगी
रात-दिन बस यही मैं सोचने लगी हूँ
तेरी वादों पे किया इस कदर यकीं
अब तो दीद को मैं तरसने लगी हूँ
पहले होती थी शामिल महफिलों में
अब तो सूनी राहों पे चलने लगी हूँ
पहले मायूस न थी कभी एक पल
अब तो हसीं को भी तरसने लगी हूँ
जो मिलती थी हंसकर सभी से सदैव
अब तो खुद से नज़रे छुपाने लगी हूँ
पहले गाती थी नगमें तेरे प्यार की
अब तो उसी को मैं भुलाने लगी हूँ
कभी होती थी चेहरे पे हरपल हँसी
अब तो हरपल आँसू बहाने लगी हूँ
~ अमित मिश्रा
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