चारों तरफ हीं अंधियारा है
गलियां सब सुनसान
मंदिर मस्जिद बंद पड़े हैं
कहां जाए इन्सान
नौनिहाल सब भूखे मरते
हे देव करो अब त्राण
अब कैसी विपदा आन पड़ी
है मुश्किल में मुस्कान।
गलतियों का पुतला मानव को
तूने हीं तो स्वयं बनाया
फिर उन की छोटी भूलों पर
क्रोध है इतना क्योंकर आया
एक बार तो माफ़ करो अब
सब सुधरेंगे नादान
अब कैसी विपदा आन पड़ी
है मुश्किल में मुस्कान।
वत्स है तेरे नीर बहाते
तू खोया वैतरणी में
कौन करेगा भक्ति तेरी
हम न रहे जो धरणी में
एक बार फिर से दे देना
तुम जीवन का वरदान
अब कैसी विपदा आन पड़ी
है मुश्किल में मुस्कान।।
~ मधुकर वनमाली