हम सबने सुना है और माना भी है कि कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है। इसी भाव को ऋषभ तिवारी ने अपनी कविता में एक नए अंदाज में प्रस्तुत किया है।
है अग्नि काल की स्मृति शेष
क्षण आ चुका है वो विशेष
जब छोड़ हृदय विक्षोभ भरा
समझौता खुद से करना होगा
प्राप्ति हेतु तुझको कुछ तो त्यगना होगा ..
एक ओर तेरे वो प्रियनयनी
एक ओर तेरे तेरी जननी
वो पुकार रही वो मांग रही
निज स्वार्थ तुझे त्यगना होगा
प्राप्ति हेतु तुझको कुछ तो त्यगना होगा ..
साहस से भरा लड़कर के जिया
जो चाह लिया वो कर ही लिया
पाषाण हृदय करके तुझको
सागर को खुद में भरना होगा
प्राप्ति हेतु तुझको कुछ तो त्यगना होगा ..
~ ऋषभ तिवारी ‘ऋषि’
हिन्दी बोल इंडिया के फेसबुक पेज़ पर भी कलमकार की इस प्रस्तुति को पोस्ट किया गया है। https://www.facebook.com/hindibolindia/posts/367362080837637
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