छलक के बोतल, दो बूंद गिरा

छलक के बोतल, दो बूंद गिरा

आओ मिलकर करें तज़किरा
हे! कहां मिला, पीने को मदिरा?

जल बहुत पिए
और ऊब गए
बिना सांझ के
दिनकर डूब गए
जब खुले
कोई मधुशाला
तभी जमेगी
दिल का प्याला

छलक के बोतल, दो बूंद गिरा
हे! कहां मिला, पीने को मदिरा?

एकांतवास से
सूख गए
बिन दारू के सब
भूख गए
बन्दी जैसन
जीवन बना
मुर्गा दारू का
नहीं ठना

किया है ठेका, खूब मुजाहिरा
हे! कहां मिला, पीने को मदिरा?

गटका ना जाता
एक निवाला
कहां है ठहरा
तू! मधुशाला
सारे पर्वों से क्या
लेना है
मधुशाला को
धन देना है

आरंभ मधु प्यालों का तब्सिरा
हे! कहां मिला, पीने को मदिरा?

कोरोंना तू भी
पापिन ठहरी
मधुशाला बिन
सांपिन ठहरी
मधु का हिस्सा
राजस्व में देखो
मुझको यूं ही
कहीं ना फेंको

मधु ही हर पूजा,यही मुबस्सिरा
हे! कहां मिला, पीने को मदिरा?

रहम करो
हे! सरकार
बिक जाने दो
घर व द्वार
खोल दो, दिल के
बन्द का ताला
दरेर रहा है
मन मधुशाला

दिल कचोट कचोट रों रहा मिरा
हे! कहां मिला, पीने को मदिरा?

~ इमरान सम्भलशाही

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