कोरोना वायरस की बीमारी और संकट से चिंतित कलमकार इमरान का संदेश इन पंक्तियों में पढ़ें।
क्या कभी सोचा था कोई
वो आयेगा और सभी को सभी से दूर ले जाएगा
लोग डरेंगे अपनों से मिलते हुए
सुघेंगे नहीं देख फूलों को भी खिलते हुएलोग दूर दराज से आए अतिथियों का
सत्कार नहीं अपकार करेंगे
शहरों से गावों की रुख करेंगे
गांव की बहारों को त्याग दलान में अपना समय बिताएंगे
पड़ोसियों को बैठने नहीं देंगे और
दोस्तों को भी हंसी ठिठोली कर उन्हें ऐठने नहीं देंगेप्रेमिकाओं के मसले पर
पहले की तरह ताली बजाने से डरेंगे
गलबैया न करके दूर से ही टकराएंगे
खांसते अपने दादा व दादी से भी दूर बैठ उनके लिए
लग्घी से दवा पहुंचाएंगेमम्मी के संग किचेन में नहीं जाएंगे
आलू का पराठा भी खाते हुए डर जाएंगे
पापा की साइकिल नहीं चलाएंगे
और बाज़ार भी उनके संग नहीं जाएंगेत्योहार नहीं मनाएंगे
न सेवय्या खाने जाएंगे और
न ही अपनों के भी घर आएंगे और
ना ही मिठाई भी किसी का खाएंगेखेतो में नहीं जाएंगे
न किसी को खेत बुलाएंगे
स्कूल नहीं जाएंगे और ना बच्चो को ही बुलवाएंगे
अकेले ही बैठ कक्षा में बड़बड़ाएंगेदेवालय नहीं जाएंगे
मस्ज़िद,चर्चा व गिरजाघर कुछ दिन भूल जाएंगे
पादरी नहीं पहचानेंगे
मौलाना से दुवा नहीं कराएंगे
पुजारी से प्रसाद नहीं ग्रहण करेंगेचाट नहीं खाएंगे, केवल गोलगप्पा देख इतराएंगे
मॉल नहीं जाएंगे और पिक्चर खुद को नहीं दिखाएंगे
सामान ऑनलाइन नहीं ही मगाएंगे
न ही किसी का कपड़ा दिया पहन सड़क पर इतराएंगेबच्चो को अलग कमरे में सुलवाएंगे
खुद को भी अलग सूलाएंगे
पत्नी को मायके से नहीं बुलाएंगे और
ना ही साथ में ताजमहल देखने जाएंगेजानवर को अपने से दूर भगाएंगे
अपनी पालतू बिल्ली व डॉगी को भी जंगल छोड़ आयेंगे
बैठ केवल याद में आंसू बहाएंगे
मौसी के भी घर नहीं जाएंगे और
केवल दूर से प्यार जताएंगेऐसा क्या आ गया है आज?
जिसके आते ही पूरी दुनिया अव्यवस्थित हो गया है
सभी रिश्ते अपने ही कहीं खो गया हैहम तो मुहब्बत करते थे एक दूसरे से
खाना खाते थे एक साथ एक प्लेट में
हाथ मिलाते थे बाहों में बाहें डालकर
एक ही बिस्तर पर सोते थे एक ही चादर मेंमच्छर से बचने के लिए एक ही मच्छरदानी लगाते थे
अब अलग अलग लगाते है
पानी पीते थे एक ही गिलास में
सांस भी लेते थे पास ही पास में
गुनगुनाते थे एक दूसरे की सांस मेंहम झूलते थे झूले में साथ
मिलकर लहराते थे आसमां में हाथ
होली व ईद साथ मनाते थे
सुबह सुबह एक दूसरे को जगाते थे
होली खेलते थे
रंगों संग खुद को सेजते थे
ईद में गले मिलते थेसभी तो बागियों में मिलकर आम झोरते थे
टिकोरा खा खाकर जिभ चटाई करते थे
मुंह में किसी के भी अम्मी का बना खटाई भरते थे
कंटीले बैर पे चढ़ कर बैर तोड़ाई करते थे
महुआ की बनाई करते थे
कटहर की कटाई करते थेएक दूसरे का अपनी ही घर हर त्योहार में कपड़ा सिलते थे
गुरुद्वारा,चर्च,मस्जिद व मंदिर साथ में जाते थे
हम उनके, वो मेरे यहां पूजा करते थेजिसे देखो,वहीं मुंह नाक बन्द किए
सरपट ठिठका सा भागा जा रहा है
किसी को किसी से कोई सुध नहीं
न फिक्र और ना ही हमदर्दी
उफ्फ!यह कैसा और किस प्रकार का मिज़ाज?आखिर आज क्या हो गया!
जो इतनी दूरियां बढ़ गया है
किसने बढ़ा दिया है?
ईश्वर की बनाई इंसानों को आख़िर
किससे इतना डर लग गया है?आख़िर वो कौन है? जो
इंसानों के मन में भय पैदा किया है आजकल!चारों तरफ इतना हाहाकार क्यो?
चीन,जापान,इटली
अमेरिका ब्रिटेन
सऊदी,दुबई,स्विटजरलैंड
पाकिस्तान आदि देशों के साथ साथ मेरा भारत भी
हाहाकार में हाय तौबा क्यो मचाए पड़ा है?किसी ने हमला किया है क्या?
जो ट्रेन, बस प्लेन सभी बन्द पड़े है
स्टेशन सूना है
एयरपोर्ट भी खाली है
आसमान में परिंदे भी पर नहीं मार पा रहे हैआख़िर क्यों?
इतना इतना स्वार्थी कैसे?हो सकता है
अपने हित के लिए सबके रिश्ते को भूल गया है
और केवल व केवल शूल दे गया हैअचानक इसी ऊहापोह में
एक रूह हृदय के पास से गुज़रा
यह पता करने के लिए आखिर
क्यो दुनिया इतनी शून्य हो गई है?भू मण्डल में एक शोर सुनाई दी! उसे
बहुत तेज़ और जैसे ही पलटा वो औरपलट के देखा तो!
किसी पीड़ित व्यक्ति ने
अस्पताल के बेड पर अंतिम सांस लेते हुए
करुणा भरी भावों में पूरे मरियल जिगरे से चिल्ला रहा था_हे ईश्वर! सबकी मदद कर,
इस दमघोटू, शैतान
“कोरोना” से
जो आ चुका है!~ इमरान सम्भलशाही
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