कलमकार मुकेश बिस्सा नारी शक्ति के सम्मान में यह कविता प्रस्तुत कर रहें हैं, आइए इसे पढ़ें और अपनी प्रतिक्रिया दें।
अपनी इच्छाओं आकांक्षाओ का दमन करती नारी
हर पल घुटकर हंसी का लिबास ओढ़ती है नारी।
सहनशीलता और कर्तव्यपरायणता की बनी प्रतिरूप
दो पाटों के बीच मे सदा पिसती जाती है नारी।
नौ देवियों के हर अवतार को धारण करती
अपने मकान को स्वर्ग का रूप बनाती है नारी।
पुरुष समाज में अपने हर अधिकार को लड़ती
समाज को समाज कहलाने के लायक बनाती है नारी
हर पल इच्छाओं आकांक्षाओं को मार देती
अपने चेहरे पर इसका न प्रभाव देती नारी।
दया,वात्सल्य और प्रेम की बनी हुई मूरत
धरा पर ईश्वर के अनेक रूप दर्शाती है नारी।
घर और बाहर के मध्य सामंजस्य बिठाती
फिर भी मुख पर मुस्कान का भाव देती नारी।
खुद दिए की लौ सी पल पल जलती रहती
समाज को रोशनी की आभा से झलका देती नारी।
~ मुकेश बिस्सा