संदिग्ध है ये वायरस, मचा रक्खा इसने कोहराम,
दीन दुखियों की देह पर बरसाये कोड़े तमाम।
जान जोखिम डालकर, करें सर्वस्व त्याग महान,
धिक्कार उन मालिकों को ख़ाली करायें जो मकान।
भय व्याप्त हर ह्रदय में, संशय में जिए इंसान,
साँसों पर प्रतिबंध लगा, घर बैठ भी दिखें हैरान।
मिलकर करना है सबको, डॉक्टरों पर एक उपकार,
घर मे ही यदि सब रहें कोरोना से करायेंगे बेड़ा पार।
संयम, साहस राखिये, ना होइये अति अधीर।
निज पीड़ा त्यागिये, अनुभव कीजे दूजन की पीर।
संयम और दृढ़संकल्प से, जीती जा सकती है हर जंग,
भय जागे जो ह्रदय में, हौसलों से कर दो उसको तंग।
समय परीक्षा ले रहा, दीजिये साहस शक्ति का उपहार।
तिमिर भरी निशा बीतेगी, भोर लाएगी आशाओं का त्यौहार।
~ वंदना मोहन दुबे