आँसू वसुन्धरा के

आँसू वसुन्धरा के

प्रकृति ईश्वर की सबसे अनूठी देन है और जीवन का हिस्सा है, इसका संरक्षण हमारा कर्तव्य है। हमारे द्वारा इसे कितनी क्षति पहुंचाई जा रही है यह सभी को भलीभांति ज्ञान है। कलमकार खेम चन्द अपनी कविता के माध्यम से बता रहें हैं कि धरती माता के आँसू मत बहने दीजिए और पर्यावरण की रक्षा कीजिए जो अति आवश्यक है।

सुन तो लो पशु-पक्षियों, जीव जन्तुओं
और वृक्षों की घबराहट का शोर,
कैसे होगी मानव जाति की नवभोर।
बिगाड़ कर अपने रम्य पर्यावरण की काया,
पूछो खुद से कभी
विकास के नाम हमने क्या है आज पाया।

कितनी मेहनत से
पर्यावरण ने खुद को बसाया होगा
जब धरा पर सभी प्राणियों ने
घर अपना-अपना पाया होगा।
कहीं हरियाली, कहीं खुशहाली,
कहीं लाल तो कहीं पर मृदा काली
हिमालय, एटलस, एण्डीज, राॅकीज़
पर्वतमालाओं की वो सफेद बर्फ की नाली।
कल-कल बहता नदियों का पानी,
छोटी-छोटी खड्डें भी है इनकी निशानी
बढ़ते वैश्विक पर्यावरणीय प्रदुषण से है
अब हमें ये नदियाँ बचानी।

कहीं गगनचुम्बी वृक्षों के घने जंगल
तो कहीं झील तालाब
आज़ पूछ रही है धरा हमसे एक सवाल?
देखकर नज़दीक अपना काल
आये हो जानने आज मेरा हाल।
बेजुबान जंगली जानवरों संग
है पशु-पक्षियों के घौंसले मुकाए
तो कहीं पर हमारा नामोनिशान मिटा कर
तुमने है शहर बसाए।
ऊंचाइयों से गिरते कल-कल झरने,
क्यों लगा है पर्यावरण हमसे डरने।
विकास और वक्त का नाम लेकर
क्यों लगे हो हम पर्यावरण से खिलवाड़ करने
हमारी गलतियों से लगी है जैवविविधता मरने।

लगाकर काज़ल कर लिया हमने अपना हार श्रृंगार
पर वसुंधरा पड़ी है हमारी गलतियों के कारण
कुछेक दशकों से बीमार।
पर्यावरणीय समस्या का इलाज़ तो करवा सकते हैं
पर हमने खुद को ही बना रखा है लाचार
आओ दिखाएं बेबस पड़ी धरा के प्रति अपना प्यार।
वृक्षों को काट कर गिना रहें हैं हम विकास
उठाओ इस कूड़े -कचरे की कंबल को
माँ सूधा को लेने तो दो श्वास।

हो गई है वाहनों की संख्या बेतहाशा
प्रकृति के नैन-नक्शों से झलक रही है रोज़ निराशा।
उद्योग-धंधों, कल-कारखानों की लगा रखी है हमने बाड़
निकाल कर हानिकारक रसायनों की किस्म
कर रहे हैं प्रकृति से खिलवाड़।
जल, स्थल और नभ सब है हमसे परेशान
पूछ रहे हैं कि ये क्या कर रहा है
पर्यावरण से तू आज के इंसान।
ढूंढ ले या कर ले पर्यावरण को बचाने के कुछ समाधान।

वायु में घुल रही है गैसें कई हानिकारक
हो स्वच्छ प्राणदायिनी लगाओ वृक्ष दवा निवारक।
बात करेंगे वृक्षों की देते हैं ये हमें आॅक्सीजन
लगाओ पेड़ बचाओ जंगल
तभी खुशहाल होगा हम सबका जीवन।
हमारे विचारों और कर्मों से बदलेगी जलदायिनी
गंगा, सिन्धु , झेलम, कावेरी, कृष्णा, गोदावरी,
नर्मदा, पद्मा, सतलुज संग हिमालय की बिपाशा
हम आप पर्यावरण के प्रति सजग होंगे
दिखती है अब वो आशा।

~ खेम चन्द

हिन्दी बोल इंडिया के फेसबुक पेज़ पर भी कलमकार की इस प्रस्तुति को पोस्ट किया गया है।
https://www.facebook.com/hindibolindia/posts/400867107487134
Post Code: #SwaRachit159

Leave a Reply


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.