१) विदाई
वही घर
जहां बचपन गुज़रा
बिटिया का
आज सजा हुआ है
आंगन में है गहमागहमी
फेरे संपन्न हो चुके हैं
फूलों से सजे
विवाह-मंड़प में अभी-अभी
अश्रुपूरित आंखों से निहारती
कभी घर को
कभी आंगन को
कभी बाबुल को
अपने जीवन-साथी के संग
लांघने जा रही है
घर की दहलीज़
सधे हुये मन से
सारी रीतियां निभाकर
सभी रस्मों को आत्मसात कर
सभी रिश्तेदार,
मात-पिता, बहन और भाई
विदा कर रहे हैं उसे
डबडबाई आंखों से
एक बार और गले
बाबुल के लगकर
वो ख़ुद को संभालने की
कोशिश में है
शुभ-जीवन के लिये.
ये कैसी अद्भुत
अश्रुपूरित ह्रदयविदारक विदाई!
२) फुटपाथ
फुटपाथ की भी सरहदें होती हैं
दिखाई नहीं देतीं
कभी-कभी
आँख वालों को भी।
जिनके लिए सड़क बनी है
अतिक्रमण कर देते हैं
वो भी कभी-कभी।
एक जैसा नहीं होता है
सभी फुटपाथों का मुक़द्दर
कोई तो झेलता रहता है
उम्रभर तन्हाई
और कोई होता है
इतना बदनसीब कि
तरसता है अकेलेपन को
हाँ ! मगर
एक बात सच है …
कुछ भी होता रहे
कोई भी गुज़रता रहे
या कोई सोता रहे
अतिक्रमण करे कोई
जिये या मरे कोई
कभी नहीं करता
कोई भी प्रतिक्रिया
फुटपाथ।
ये ही शाश्वत सत्य है
फुटपाथ की भी सरहदें होती हैं।
३) एक ही है
भूख और बीमारी
बेबसी, लाचारी
संकीर्ण परंपराएँ
अर्थहीन रिवाजों का चोला
खोखली रस्मों का गोला
सामाजिक मर्यादाओं की नई परिभाषाएँ
मानवीय मूल्यों की प्लास्टिक सर्जरी
जातियता के समीकरण
धार्मिक खिलवाड़
तुष्टिकरण की राजनीति
विभाजन की शतरंज
जोड़-तोड़, दाँवपेंच
भ्रष्टाचार का रावन
भस्मासुरी सुविधाएँ
चरमराती धीमी न्याय व्यवस्था
दम तोड़ती पत्रकारिता
निरंकुश विधायिका
दुर्लभ होता लोकतंत्र
रिमोट संचालित ज़िन्दगी
उम्मीद का आनन्द
अज़ान की आवाजें
आरती की गूंज
मन्दिरों का घंटनाद
जगाता शंखनाद
गुरवाणी के स्वर
लॉर्ड्स प्रेअर
ईद की सेंवईया
दीपावली की मिठाई
इनकी मिठास
एक सी नहीं
एक ही है।
४) क्या कहा हमने था जो प्यार किया
उनके वादे पे ऐतबार किया
मुद्दतों हमने इंतज़ार किया
वक़्ते रुख़सत पे पूछते हैं वो
क्या कहा हमने था जो प्यार किया
फ़ैसले पर जहाँ ने पूछा है
कौन सी बात पर क़रार किया
जो मुनासिब नहीं थी उल्फ़त में
तेरी बातों को दरकिनार किया
ख़ुद को कहते हो पारसा अक्सर
कौन सा काम तुमने यार किया
जिसके दामन पे दाग़ हैं, उसने
मुझको बदनाम बारबार किया
और कोई न भूल की हमने
ये ख़ता है कि तुमसे प्यार किया
और किसने हमें ज़माने में
माँ के जैसा कभी दुलार किया
अब न ‘आनन्द’ पहले जैसा है
आदतों में बड़ा सुधार किया।
५) सफ़र में साथ कोई दोस्त हो तो अच्छा है
हुआ न ज़ीस्त में उसकी कभी झमेला है
के जिसके सर पे दुआओं का माँ की साया है
किसी को प्यार भी दौलत से बेतहाशा है
कोई जहाँ में मोहब्बत का कितना प्यासा है
मिला है इश्क़ जो सच्चा तो पा लिया है ख़ुदा
है खेल प्यार अगर, ज़िन्दगी तमाशा है
वो जानता ही नहीं दो दिलों के नाते को
कहा है जिसने ज़माने में प्यार सौदा है
कठिन रहे हैं सदा रास्ते मोहब्बत के
कहीं हैं राह में काँटें कहीं पे सहरा है
जहाँ बसी है मुक़म्मल सराब की दुनिया
वहाँ पे कोई समुन्दर न कोई दरिया है
अभी लिया है, अभी तोड़ भी दिया पल में
ये मेरा दिल है, भला क्या कोई खिलौना है
हरेक राह पे ‘आनन्द’ सैंकड़ों दुश्मन
सफ़र में साथ कोई दोस्त हो तो अच्छा है।
शब्दार्थ: सराब = मृगतृष्णा / भ्रमजाल
६) मुहब्बत हो नहीं सकती
कभी स्वभाव से मीठी सदाक़त हो नहीं सकती
अगर रहता है शक़ क़ायम मुहब्बत हो नहीं सकती
किये झूटे सभी वादे वफ़ा की तोड़ दीं रस्में
किसी की जान लेना तो रिवायत हो नहीं सकती
मिले हैं ज़ख़्म उल्फ़त में मिले हैं दर्द चाहत में
मिला क्या-क्या भला किस से शिनाख़त हो नहीं सकती
नफ़ा वक़्ती ही होता है बुरा तो बाद में होता
हमेशा झूट अपनाकर तिजारत हो नहीं सकती
सियासत है वही असली जो दे जनता को सुख बेशक़
अगर जनता का दिल दुक्खे सियासत हो नहीं सकती
अगर हो प्यार का शासन सभी के दिल में हो उल्फ़त
शिकायत हो नहीं सकती बग़ावत हो नहीं सकती
सदा होता है सच कडुवा मगर देता सुकूँ हर पल
मगर इक बात झूटी में हलावत हो नहीं सकती
अमन का ही दिया पैग़ाम जीने दो जियो ख़ुद भी
कभी बढ़कर के इससे भी रिसालत हो नहीं सकती
अगर जाने बुरा-अच्छा अगर सीखा अदब हमने
कभी ‘आनन्द’ फिर हमसे हिमाक़त हो नहीं सकती
शब्दार्थ: रिसालत = पैग़ाम देना रसूल के द्वारा ; हलावत = मिठास
७) घरौंदा
घरौंदा
एक ही था
एक ही बनाया था
वो रेत का नहीं
ख़्वाबों का था
हम दोनों की आंखों में।
हम दोनों होना चाहते थे एक
बाधाएं उपस्थित हो गई थीं अनेक।
कभी जाति, कभी धर्म, कभी धन
कभी सामने हमारे
कभी बीच में हमारे
खड़े हो गये थे सारे
कितनी अपरिचित, कितनी असीमित ,
अनन्त बनाकर दीवारें ।
और सभी ने मिलकर
साज़िशें रचकर
दे दिये थे हमें कुछ जख़्म ऐसे
निशान कभी मिट नहीं पाए जिनके।
और कुछ ज़ख़्म ऐसे थे
जो बस हंसते हुए रिस रहे थे ।
फ़िर समाज ने वो किया
जिसे कहते हैं पाशविक व्यवहार
हमारे साथ।
दबाने के लिए हमें इतना कुछ
किया गया था
कि हमारे ही रिसते हुये जख़्मों के ताजे व
गर्म लहू को हमारे ही मुंह पर
मल दिया गया था ।
आख़िर कब तक
यूँ ही चलते रहेंगे ये झूठे, खोखले, अर्थहीन
रीति-रस्म और रिवाज
‘आनन्द’ एक दिन तो बदलकर रहेगा ये समाज।
‘आनन्द’ एक दिन तो बदलकर रहेगा ये समाज।।
८) आँख तूफ़ा से हंसकर लड़ाओ कभी
ख़ुद की हिम्मत को यूँ आज़माओ कभी
आँख तूफ़ा से हंसकर लड़ाओ कभी
अपने वादे पे मिलने भी आओ कभी
रस्मे उल्फ़त को आकर निभाओ कभी
आ के दिल को मेरे गुदगुदाओ कभी
एक पल के लिए पास आओ कभी
कौन ऐसा है जिसमें कि कमियाँ नहीं
ख़ामियाँ भूलकर मुस्कुराओ कभी
गौर कर लो ग़रीबों की आहों पे कुछ
इतनी इन्सानियत भी दिखाओ कभी
जी रहा जो उदासी में इन्सान है
कर जतन कोई उसको हंसाओ कभी
है परेशाँ शिकम की कोई आग से
दो निवाले किसी को खिलाओ कभी
दान करना , सखावत बड़ी बात है
पुण्य ‘आनन्द’ कुछ तो कमाओ कभी
९) रफ़्तार में न शहर की कोई कमी मिली
है ख़ुशनसीब जिसको तेरी बन्दगी मिली
आया जो तेरे दर पे उसी को ख़ुशी मिली
पाया जो तेरा प्यार, महकने लगी फिज़ा
इस ज़िन्दगी को फिर से नई ज़िन्दगी मिली
दुनिया की कुछ ख़बर है न ख़ुद का कोई पता
महवे-ख़याले यार थे, ये बेख़ुदी मिली
जीता रहा जो प्यार के सागर में उम्र भर
उसको भी ज़िन्दगी में यहाँ तिश्नगी मिली
आँखों में है सराब कोई उसकी, क्या ख़बर
डूबा जो इनमें, क़ैद उसे उम्र की मिली
समझा था जिनको साहिबे किरदार शह्र में
उनके घरों में पाप की दौलत भरी मिली
जलती रहीं तमाम ग़रीबों की बस्तियाँ
रफ़्तार में न शह्र की कोई कमी मिली
आता है जो क़रीब वही लूटकर गया
‘आनन्द’ क्या अजब ये मुझे सादगी मिली
१०) फिर से अम्नोअमान कैसे हो
इतने तुम बदगुमान कैसे हो
अब तो कर दो बयान कैसे हो
आपसे प्यार हो गया है जब
फिर जहाँ में रुझान कैसे हो
कुछ को बस फ़िक्र ये लगी रहती
सबकी नज़रों में मान कैसे हो
हैं परिन्दे तमाम शाख़ों पर
बारिशों में उड़ान कैसे हो
हैं परेशाँ किसान सूखे में
दे न पाए लगान, कैसे हो
आ गया है क़रीब अब तूफ़ाँ
पास ये इम्तिहान कैसे हो
दिल में नफ़रत का ज़ह् र जिसके है
उसकी मीठी ज़ुबान कैसे हो
फूल ने ख़ार से सवाल किया
इतने भी तुम जवान कैसे हो
हादसा तो गुज़र गया लेकिन
फिर से अम्नोअमान कैसे हो?
मश्विरा कुछ तो दीजिए ‘आनन्द’
दूर उनका गुमान कैसे हो?
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SWARACHIT652 – दोस्ती फिर अजनबी से हो गई
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