सच कहूँ जब मैंने भी सबकी
भांति सुना दीपक जलाना है
तो लगा ठीक है अच्छा है
इसी बहाने बिन त्यौहार
त्यौहार मना लेंगे
उत्सुकता जरूर थी
कि इस अजीबोगरीब माहौल में
आज कुछ अलग सा होगा
सकारात्मक भाव लिए
मन को बहलाया जा रहा था
ये भी ज्ञान था कि इसे आशा का दीपक
उम्मीद का दिया कहेंगे
जहाँ इन्सानी बस नहीं चलता
वहाँ पर हमें इन सब बातों का
कुछ अधिक आभास होता है
तथाकथित जैसे ही दीपक जलने लगे
जो भी सुन रही थी
सब महसूस करने लगी
ये क्या दिये बालकनी पर जल रहे थे
वो तो सब प्रत्यक्ष देख रहे थे
पर उस पल जो
हृदय के भीतर ज्योत जगी
उसकी रोशनी का नजारा
सच बतायें किसने देखा
वो उम्मीदों को ढांढस बंधाते
आशावान चेहरे
वो अंधेरों को चीरती
जगमगाती लौ
सच कैमरे की जरूरत ही नहीं पड़ी
जाने कितनी सुखद तस्वीरें
कैद हो गयीं जहन में
हमेशा-हमेशा के लिए
कितना विश्वास, कितनी श्रृद्धा
देखी भारतवासियों में
धन्य हैं हम जो हम इस अमूल्य धरोहर
भारतीय संस्कृति की छांव में पल रहे हैं
और प्रधानमंत्री के रूप में हमने मोदी जी
जैसी शख्सियत का साथ पाया
जिन्होंने हर बाधा के समक्ष डटकर
और आशावान रहकर खड़े होना सिखाया
और इन्हीं सब के साथ हमने हर जंग जीती
और जीत का परचम लहराया
~ उमा पाटनी अवनि