मानव है सर्वशक्तिमान, इस दंभ को तोड़ा तुमने,
इस पुनर्जागृति के लिए तुम्हारा धन्यवाद कोरोना!
यहाॅं सबको समय व अपनों का महत्त्व समझाया,
ऐसे पुण्य हेतु हम सब करते हैं अभिवाद कोरोना!
जिनसे तुम सुदूर हो, उन्हें जीने की उम्मीद है शेष,
तुम्हारी उपस्थिति है भय व घोर अवसाद कोरोना!
आख़िर तुम्हारा जन्मदाता है कौन-सा राष्ट्र जग में,
व्यर्थ ही खड़ा हो गया है अब यह विवाद कोरोना!
प्रकृति का शोषण भी असीमित हो चला था शायद,
तो क्या यही प्रकृति के युद्ध का शंखनाद कोरोना!
जो कुछ बोया था कभी, वो तो काटना ही पड़ेगा,
यह है मात्र हमारी अंधभक्ति का प्रसाद कोरोना!
विचार व व्यवहार में स्वच्छता है मील का पत्थर,
याद रहेगी यह सीख हमको इसके बाद कोरोना!
जिनकी पहुॅंच थी कभी उस चाॅंद के फलक़ तक,
आज फ़ोन पर ही हो रहा उनका संवाद कोरोना!
स्वार्थ जब सेवाभाव संग मिला इस समाज में,
मानवता पर हावी हो गया भौतिकवाद कोरोना!
सबकी अखंड एकता का बल एकजुट जो हुआ,
चखाएंगे हम तुमको भी हार का स्वाद कोरोना!
तुम्हारा ये आतंक तो कुछ ही पल ठहरेगा यहाॅं,
फैलाया है तुमने हर तरफ़ आतंकवाद कोरोना!
बेफ़िक्री, नासमझी, ओछापन व अपरिपक्वता,
तेरी खिलती फ़सल की यही तो है खाद कोरोना!
खौफ़ की दास्तां जब भी कोई कलम लिखेगी,
न मिलेगा किसी को तुम्हारा अनुवाद कोरोना!
~ इं० हिमांशु बडोनी (शानू)