रुख़-ए-रौशन

रुख़-ए-रौशन

किसी की खूबसूरती, मुख के तेज की प्रशंसा में आप कितनी मिशालें देंगे। उसकी बनावट, रंग-रूप असली हैं और उन्हें वयक्त करने में आपके पास शब्द कम पड़ जाएंगे। कलमकार रज़ा इलाही ने चंद पंक्तियाँ पेश की हैं जो खूबसूरती को बयां करते हैं।

रुख़-ए-रौशन पे ये जो टीका लगा रखा है
गोया दौलत-ए-हुस्न पे पहरा लगा रखा है

उसकी अदाओं के तब-ओ-ताब का क्या कहना
जैसे रौज़न-ए-माह से एक नूर आ रखा है

ताबानी उसके पैरहन-आराई की ऐसी
मानो ज़मीन पे ही क़ौस-ए-क़ुज़ह छा रखा है

सुख़न-तराज़ियाँ भी उसकी इतनी दिल-आवेज़
जैसे मुतरिब ने नया कोई राग सजा रखा है

सताइश में उसके क्या क्या लिखोगे ‘रज़ा’
वो हक़ीक़त है और तुमने ख़्वाब बना रखा है

~ रज़ा इलाही

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rukh-e-raushan = bright face;
tiika = a piece of jewellery tied on forehead;
tab-o-taab = amazing;
rauzan-e-maah = window of moon;
taabaanii = brightness;
pairahan-aaraa.ii = embellishing dress;
qaus-e-quzah = rainbow;
sukhan-taraaziyaa.n = styles of conversations;
dil-aavez = attractive;
mutrib = singer;
sataa.ish = praise