व्यापार

व्यापार

आज समस्त विश्व का व्यापार, हो गया है लाचार, कोरोना का है प्रसार.
चौपट है व्यापार, व्यापार का पहिया है अवरुद्ध, व्यापारी गण क्रुद्ध.
महामारी ने पाव पसारा है, मानवता पर संकट भारी है.
लोभ, लिप्सा, साम्राज्यवाद ने दानवता जगायी है,
सहस्त्र फणों की लोलुपता ने यह महामारी फैलायी है.
अर्थ की भूख ने आज ऐसा दिन दिखलाया है,
मर रहे लोग, तड़प रहे हैं लोग, चीत्कार
संसार भर में समाया है.
मानव की ये लिप्सा आज इतनी बढ़ जाएगी,
मानव-मानव का ग्रास बनेगा, सारी धरती थर्रायेगी.
अभी तो कलियुग का यह प्रथम चरण है,
मानवता को लीलने का ये अजब ढंग है,
शर्मशार है ये मानवता बेशर्म है ये मानव,
धिक्कार है इनका जीवन, चीत्कारे जन,
हाय व्यापार, हाय व्यापार, हाय व्यापार,
ये चीत्कार, ये चीत्कार, नर संहार।

~ डॉ. कन्हैयालाल गुप्त ‘किशन’

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