कभी-कभी साधारण सी बात पर भी असमंजस सी स्थिति उत्पन्न हो जाती है। साकेत हिन्द की कुछ पंक्तियाँ भी असमंजस की दशा वयक्त करतीं हैं।
सामने हैं इतनी राहें
इसे चुनूँ या उसे
दुविधा है कई मन में।
विकल्पों में है उलझन
सब ही तो अच्छे लगते हैं।हार जीत भी निराली है
हार कर भी हम हँसते हैं,
कभी जीत पर रोना आता है।
खोने का डर सताता है,
फिर भी पाना ही एक मात्र चाहत है।मैं सही हूँ या गलत
तुमसे बेहतर कौन जाने?
जवाब देने के लिए
सवालों में डूब जाना करे शर्मिंदा,
तो कभी बना दे चुनिंदा।मैं भी तुम जैसा ही हूँ
अलग कैसे नज़र आता हूँ?
हर क्षण एक जैसा नहीं है
कभी तुम बहुत प्रिय बन जाते
और मैं ईर्ष्यालु हो जाता।तुम भी हो, मैं भी हूँ यहीं,
फिर भी एक दूरी नज़र आती है।
तुमने एक शब्द भी बोला नहीं,
फिर भी मेरे मन को
तुम्हारी बातें सुनाई देती है।~ साकेत हिन्द
हिन्दी बोल इंडिया के फेसबुक पेज़ पर भी कलमकार की इस प्रस्तुति को पोस्ट किया गया है।https://www.facebook.com/hindibolindia/posts/435537434020101
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