आज समस्त विश्व को सहयोग की परमावश्यकता है लोगों के सहयोग की.
इस विश्व विपदा की घड़ी में सहयोग की मानवता को बचाने में सहायक होगी.
यह युद्ध अब वैश्विक हो चला है, इसके तौर तरीके बदल गये हैं.
अब युद्ध अस्त्र शस्त्रों से नहीं धूर्तता से थोपी जा रही है, जो कलंक है.
मानवता को शर्मसार करने वाला है, आज आदमी आदमी के खून का प्यासा हो गया है.
उसकी आदमियत घास चरने चली गई है.
वह मानवता से खून की होली खेल रहा है.
ये इंसान को क्या होता जा रहा है.
हम स्वयं ही स्वयं के लिए खतरा बनते जा रहे हैं.
कैसे ये धरा रहेगी, कैसे इसका अस्तित्व बचेगा, कौन इसका तारनहार बनेगा.
आज सिर्फ और सिर्फ सहयोग से ही इस धरा को बचाया जा सकता है.
मानवता को जिन्दा रखा जा सकता है.
बस इसी सहयोग की आवश्यकता है.
आज बस यही कारगर साबित होगा.
~ डॉ. कन्हैयालाल गुप्त ‘किशन’