कलमकार विमल कुमार वर्मा ने भ्रष्टाचार पर अपने विचार इस कविता में व्यक्त किए हैं। भ्रष्टाचार एक बीमारी की तरह सबको ग्रसित करता है और यह कदापि हितकारी नहीं होता है।
अरे! यहां क्या देखते हो, जरा वहां भी तो देख,
इस भ्रष्टाचार की दुनिया मे कौन-किसका है, ये तो देख।
सब दिखावा है अपनो में,
बाकी अपने-अपने लुटाए इस भ्रष्टाचार में।
अरे! यहां क्या देखते हो, जरा वहां भी तो देख,
इस भ्रष्टाचार की दुनिया मे कौन-किसका है, ये तो देख।डॉक्टर से लेकर अफ़सर तक, सब समाये इस भ्रष्टाचारी में,
रिश्वतखोरी की दुनिया में, बैर हुए जमाने से।
तुझे कांग्रेस से मिली जीत तो, मुझे बीजेपी से मिली जीत,
तू भी हुआ शिकार इसी का, मै भी हुआ शिकार इसी का।
अरे! यहां क्या देखते हो, जरा वहां भी तो देख,
इस भ्रष्टाचार की दुनिया मे कौन-किसका है, ये तो देख।तड़प-तड़प मर रहे युवा, इस भ्रष्टाचार की आड़ में,
लाखों ठगे जाए इस शैतान जाल मै।
दो का दस में बेचे जा रहे खुले बाज़ार में,
किसानों का हक छिने किसान प्रधान देश में।
अरे! यहां क्या देखते हो, जरा वहां भी तो देख,
इस भ्रष्टाचार की दुनिया मे कौन-किसका है, ये तो देख।~ विमल कुमार वर्मा