धरती है कहती

धरती है कहती

धरती अब यूँ है कहती
दुखी हो सब को बताती
देख लो अन्य ग्रहोँ तुम सब भी
कितना स्वार्थी है ये मानव
मैंने ही इनको जीवन दिया
सदियों तक अंगार रही
फिर सदियों बाद
जीवन अनुकूल बनी
हर तरह से जीने का आधार बनी
पर इन्हे नहीं रही कदर मेरी
भूल गए ये मेरे उपकार
हर तरफ प्रदुषण अपार
गढ्ढे करके दिए गहरे घाव
मेरे आभूषण भी दिए उजाड़
अन्य ग्रहोँ तुम सब हो कितने खुशहाल
नहीं है तुम पर मानव का प्रहार।

~ सचना शाह

Leave a Reply


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.