पतझड़ का मौसम मन को नहीं भाता है, लेकिन यह एक सत्य है कि हर साल यह आएगा। इसी प्रकार जीवन में भी अनेक उतार-चढ़ाव आते हैं किन्तु वे क्षणिक होते हैं। हमें किसीका क्षणिक व्यवहार देखकर कोई अप्रिय राय नहीं बनानी चाहिए। ऐसी ही कलमकार इमरान संभलशाही की एक कविता पढ़िए।
मै ठूंठा बृक्ष “पतझड़” हूं
हां! “पतझड़” हूं
और आगमन “बसंत” का हुआ है
और हम नंग धड़ंग
क्यो? क्या कभी सोचा?मै बताता हूं, कैसे?
दुख के बाद सुख का आना
लू के थपेड़ों बाद बारिश की गिरती बूंदें
तपती “भू” पर बिखरती सोंधी खुशबू
प्यासे “कंठ” में तरता पानी
और क्रमशः “ऋतुओं” का आना जाना देखोदेखा है ना!
बस इसी तरह, मैं भी
“बसंत” के आगमन में सूखा ठूंठ दिखता
अवश्य हूं
लेकिन ठूंठा नहींकुछ दिन बाद देखना
मेरी शाखाओं को ध्यान से
जब आकाश की टिमटिमाती तराओं
की भांति
हरित वर्ण में कोमल
नन्ही कोंपले
फुदुकते हुए दृष्टिगोचर होने लगेंगेधूप को सेंकती
यही कोंपले जवान होने लगेंगी
प्रेम में सरोबार होने लगेंगी
मिलाप करने लगेंगी
मुस्कुराते हुई अपनी अल्हड़
जवानी को
बिंदास जीने लगेंगीऔर आ जाएंगे
सभी कलरव करते हुए पक्षियां
तितलियां, भौरें
और तो और
कुछ दिनों और बाद
कलियां विकसित हो
जब फूल खिलने लगेंगे
तब भौरों को देखना
कैसे गुनगुनी गीत गाते हुए
मेरे रस को चूसते हुए
प्रेम में, अनुराग में
अपनी पराग रूपी प्रेयसी
को लुभाते नज़र आएंगे
और आलिंगन में बद्ध हो जाएंगेमेरा इतराना भी देखना
तब और भी
जब सुदूर आंचल से
लोग मेरी छांव तले
जोड़े की शक्ल में
सिहरते हुए
तस्वीर निकालते दिखाई पड़ेंगे
और विभिन्न कोणों से सेल्फी भीऔर मेरे ही तले
बैठे श्रृंगार की रतियां
गलबैयां करते मिलेंगे
साथ क़ैद की हुए अपनी तस्वीरों को
“फेसबुक”, “ट्विटर”, “इंस्टाग्राम”
समेत अनगिनत
सोशल मीडिया प्रांगण में
बड़े चाव व शौक से
शेयर करते रहेंगेमेरी तस्वीरों से जुड़ी पोस्टों को
लाखों लाख
करोड़ों करोड़
कमेंट्स, लाइक्स दिखेंगेआम जनमानस से लेकर
संसद भवन में बैठे मंत्री संत्री भी
डॉक्टर, समाजसेवी भी
नौकरशाह व शिक्षक भी
उपन्यासकार व आलोचक भी
साहित्य, कला, रंगमंच इत्यादि “पृष्ठिभूमि” वाले
सब के सब!देखा ना!
मै क्या हूं और क्यो हूं?
क्या अब?
पुनः मेरे पतझड़ होने पर हंसोगे?
हंसना मत, हां!
पुनः कहता हूं
किसी “शोषित” पर मत हंसना
ऐसे ही धोखा खा जाओगे?~ इमरान संभलशाही
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