साफ सफाई बनाए रखना हमारे स्वयं के लिए ही बहुत फलदायी सिद्ध होता है, इससे स्वास्थ्य और परिसर दोनों ही सुंदर रहते हैं। कलमकार खेम चन्द ने स्वच्छता पर जोर देते हुए अपना संदेश इस कविता में दिया है।
ये जमीं ये खुला आसमान
क्यों है? हमारी गलतियों से ये रमणीय धरा परेशान॥
बड़े-बड़े बना रहे हैं आजकल हम मकान
वनों को काटकर वसुंधरा को बना रहे हैं रेगिस्तान॥
बदल गया है आज मेरा अपना गांंव
देवदार के घने वृक्षों ने भी घटा दी हैै अपनी छांव॥
कैसे बता दूं वक्त को मैं अपना नाम
खुद ही कूड़ा-कचरा फैलाकर कर रहा हूँ दूसरों को बदनाम ॥
नज़दीक आ रही है विकट समस्याओं वाली शाम
समस्याओं से निज़ात मिल जायेगी गर करूं मैं सही काम॥
कहीं पोलिथीन तो कहीं पर फेंक रहा हूँ कांच
देखने पर भी अनदेखा कर रहा हूूँ वसुुधा के तन की आंच॥
पहाड़ भर दिया और भरा दिये हमने कूड़े-कचरे से नाले
मंडराने लगे हैं धरा की सुन्दरता पर बादल काले॥
ढूंढों समधान मिलकर धरणी को समस्या से निकालें
मैंं ही क्यों करूं प्रयास इस विचार को मन में ना पालें॥
घर साफ़ रख रहा हूँ आस-पड़ोस को कर रहा हूँ गंदा
खुद सफाई ना करके रूह को कर रहा शर्मिन्दा॥
आने वाली पिढ़ियों को समस्या छोड़कर क्यों रह रहा हूँ मैं जिन्दा?
साफ़ करूं इस ढेर को ताकि भविष्य ना करे हमारी निन्दा॥
सूखी धरती वृक्ष बिन हो रही विरान
कब जागेगा आज़ का इंसान॥
याद रखना देना होगा हमें भी वसुुधा को लगान
वरना वो घड़ी दूर नहीं जब खो देना मानव अपनी पहचान॥
पूछ रही है चिल्ला-चिल्ला कर राख वो शमशान
धरा को नष्ट करने के बाद यहीं आकर मिटती है तुम सबकी थकान॥
~ खेम चन्द
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