उम्मीद के आँगन में,
हमारा जीवन गुजारना,
एक मज़ाक सा लगता है।
हम उम्मीद क्यों लगाए बैठे हैं?
जबकि उम्मीद के
ना-उम्मीद होने का डर रहता है।
हम उम्मीद क्यों रखते हैं?
जब ना-उम्मीद,
उम्मीद की हमसफर है।
उम्मीद के साये में हमेशा,
खुशियाँ और मुस्कुराहट ही नहीं होती,
उदासी के दरिया में भी डुबना पड़ता है।
लोग कहते हैं,
उम्मीद पर कायम है दुनिया,
यही सोच हम भी उम्मीद लगाए हैं।
उम्मीद है ऐसा होगा,
उम्मीद है वैसा होगा,
उम्मीद पर हमने भी भाग्य आजमाए हैं।