पहले जैसे होंगे हालात, उम्मीद लगाये बैठे हैं,
गले मिला करेंगे सबसे, ये स्वप्न सजाये बैठे हैं।
मिट जायेगी ये मजबूरी,
बीच रहेगी अब ना दूरी,
चाह रहेगी नहीं अधूरी,
मनोकामना होगी पूरी,
घर में इन सब बातों का, दिया जलाये बैठे हैं,
पहले जैसे होंगे हालात, उम्मीद लगाये बैठे हैं।
छट जायेगा ये जो तम है,
वो है तो फिर कैसा गम है,
लाकडाउन में काफी दम है,
उम्मीद पे दुनिया कायम है,
कोरोना की मौत के लिए, जोत जलाये बैठे हैं,
पहले जैसे होंगे हालात, उम्मीद लगाये बैठे हैं।
मंदिर मस्जिद खुल जायेंगे,
घर से लोग निकल पायेंगे,
लोग खरीदी कर पायेंगे,
भय से मुक्ति पा जायेंगे,
इस महामारी से मुक्ति का, चित्र बनाये बैठे हैं,
पहले जैसे होंगे हालत, उम्मीद लगाये बैठे हैं।
रूपेन्द्र गौर