मानवता

मानवता

कोरोना महामारी से इंसान सकुचाया है।
हर जगह भय का साया है।
क्रूर, निर्दय ह्रदय भी सहज हुआ है।
अपने मन का अहम भी भगाया है।
अपनी सोच का दायरा भी बढ़ाया है।
इस कहर में भी अपना हाथ बढ़ाया है।
अपनी लालसा को सिमेटकर
निर्बल, गरीब का सहायक बना है।
प्रकृति भी देख मुस्करा गई।
यही इंसान की सच्ची मानवता है।
जो संकट में भी हाथ आगे बढ़ाया है।
जो दीन-हीन, निर्बलों की आवाज बने हैं।
जो इस कठिन डगर में भी
उनके ‘कंधे से कंधे मिलाकर’ साथ खड़े हैं।
यही निःस्वार्थ सेवा इंसान को मानवता बनाती है।

~ डॉ. डी सी मीना

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