श्रमिक

श्रमिक

व्यथीथ हो चला था
हृदय में अपने
अनंत पीड़ा लेकर वह अपने घर को चला था
क्या करता
इस बड़े से शहर में
शहर के व्यवहार से, वह कुपित हो चला था
ऐसा नहीं था कि
नहीं थे अच्छे लोग, उस शहर में
पर वह उनसे अब तक, न मिल सका था
शहर की चकाचौंध में
अपना अस्तित्व ही वह खो चुका था
इसलिए थक-हारकर
वह अपने गाँव, अपने घर को चला था..

~ मोहित पाण्डेय

01 मई 2020- अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस पर समर्पित एक कविता

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