ज़िंदगी

ज़िंदगी

ज़िंदगी शब्द नहीं एक महाकाव्य है
इसमें छुपी अनगिनत कहानिया है
जिसने महाकाव्य की कहानियों को समझ लिया
उसने ज़िन्दगी को जीना सिख लिया

मेरी ज़िन्दगी महाकाव्य कम और महाभारत ज्यादा थी
मेरी ज़िन्दगी, ज़िन्दगी कम बवाल ज्यादा थी
मेरी छोटी सी ज़िन्दगी में बहुत सी कहनिया है
जिन्हे साझा करना चाहता हूँ सब के साथ
मेरे हालात, मेरे ख्यालात,
मेरी सोच, मेरे तजुर्बे, मेरी खामिया
लेकिन सवाल है किसके साथ
सब अपने महाकाव्य में व्यस्त है
मेरी ज़िन्दगी महाभारत में अस्त-व्यस्त है

कोई मिला ही नहीं जो सुन सके हमारी महाभारत
किसी के पास दिल नहीं है तो किसी के पास चाहत
जिसके पास दिल, चाहत है उसके पास समय नहीं है
आज भी समय की कमी नहीं है किसी के पास भी
कमी है तो बस उस चाहत की,
जिसे किसके लिए रखना है ये तय लोग करते है,
उसी तरह से वह उन्हें अपना वक़्त और प्यार बाटते है!

यह छोटी सी ज़िंदगी जो मेरे लिए बिलकुल छोटी नहीं है
मैं तो थक सा गया हूँ ज़िंदगी से
लेकिन चाहते है जो मरने नहीं देती
सारी चाहते दिल के किसी कोने में दुबक के बैठी है
कभी कभी खुल के सामने भी आ जाती है
ज़िंदगी की महाभारत देख कर फिर दुबक जाती है

यह ज़िंदगी है, बहुत कुछ महसूस कराती है
कभी हँसाती है, कभी सहलाती है, कभी रुलाती है

मैं अजीब हूँ और ज़िन्दगी मेरी मुझसे भी अजीब है
मैं सबको अपना समझता रहा
कोई मुझे अपना समझता है क्या?
क्या सच में कोई बिना मतलब के
यूँ ही मुझपे अपनी चाहत रखता है क्या?
क्या, क्यों, कैसे, लेकिन, किन्तु, परंतु
जब भी ये शब्द लग जाते है
तब ये ज़िन्दगी आसान नहीं रहती!

और ये शब्द मेरी अजीब-सी ज़िन्दगी के हिस्से है
इन हिस्सो से मेरी ज़िन्दगी के किस्से है

~ भवदीप

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